* प्रस्तावना *
चंदन का पेड़ भारतीय संस्कृति में अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना जाता हैं| मंदिरों की पूजा से लेकर आयुर्वेदिक चिकित्सा तक, चंदन का स्थान विशेष रहा हैं| इसकी लकड़ी की महक मन को शांति देती हैं और इसे भगवान को अर्पित करना शुभ माना जाता हैं| प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनि ध्यान और साधना के समय चंदन का तिलक लगाते थे क्योंकि इसकी ठंडक मानसिक एकाग्रता बढ़ाती हैं| धार्मिक दृष्टि से चंदन को 'देव वृक्ष' कहा गया हैं, वहीँ वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह पेड़ एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर हैं| चंदन का तेल त्वचा रोगों, घाव और तनाव कम करने में अद्भुत असर करता हैं| यह पेड़ वातावरण को शुद्ध करता हैं और सकारात्मक ऊर्जा फैलाना हैं| आधुनिक शोधों ने भी सिद्ध किया हैं कि चंदन की खुशबू मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में मदद करती हैं|
इस ब्लॉग में हम चंदन के पेड़ के प्रमुख पहलुओं को धार्मिक, वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टि से विस्तारपूर्वक जानेंगे|
1. चंदन का धार्मिक महत्व:-
भारतीय संस्कृति में चंदन का स्थान अत्यंत पवित्र माना गया हैं| मंदिरों में देवी-देवताओं की प्रतोमाओं पर चंदन का लेप चढ़ाना एक अनिवार्य परम्परा हैं| भगवान शिव को चंदन अर्पित करना विशेष रूप से शुभ माना जाता हैं, क्योंकि माना जाता हैं कि चंदन की ठंडक शिव के शांत और संयमी स्वरूप का प्रतीक हैं| धार्मिक ग्रंथो में भी इसका वर्णन मिलता हैं जहाँ इसे "देव वृक्ष" कहा गया हैं| तिलक के रूप में चंदन लगाने की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही हैं| यह केवल आस्था का विषय नहीं हैं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसका स्पर्श और सुगंध मस्तिष्क को ठंडक देते हैं और मन को एकाग्र करते हैं| विवाह, यज्ञ, संस्कार और त्योहारों में भी चंदन का प्रयोग शुभता और शुद्धता का प्रतीक हैं| हिंदू धर्म ही नहीं, बौद्ध और जैन धर्म में भी चंदन का उपयोग विशेष महत्व रखता हैं| इस प्रकार चंदन केवल एक वृक्ष नहीं, बल्कि भारतीय धर्म और आध्यात्मिक परंपराओं का आधार हैं|
2. चंदन का वैज्ञानिक महत्व:-
चंदन का धार्मिक महत्व तो हैं ही, परंतु इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण और भी अद्भुत हैं| चंदन की लकड़ी और तेल में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं| यही कारण हैं कि इसका उपयोग घाव भरने, त्वचा रोगों और संक्रमण के उपचार में किया जाता हैं| आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने भी साबित किया हैं कि चंदन की खुशबू मनोवैज्ञानिक रूप से तनाव कम करती हैं और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित बनाए रखती हैं| इसकी सुगंध से शरीर का नर्वस सिस्टम शांत होता हैं और नींद में सुधार होता हैं| अरोमा थेरेपी में चंदन का तेल विशेष रूप से प्रयोग किया जाता हैं| इसका असर इतना प्रभावी होता हैं कि चिंता और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं से जूझ रहे लोगों को इससे लाभ मिलता हैं| वैज्ञानिक दृष्टि से यह भी पाया गया हैं कि चंदन की लकड़ी हमेशा ठंडी रहती हैं, चाहे मौसम कितना भी गर्म क्यों न हो| यह विशेषता इसे अद्वितीय बनाती हैं| इस प्रकार चंदन का वैज्ञानिक महत्व हमारे स्वास्थ्य और जीवन को सीधे प्रभावित करता हैं|
3. आयुर्वेद में चंदन:-
आयुर्वेद में चंदन को अमूल्य औषधि का दर्जा दिया गया हैं| आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसे पित्त को शांत करने वाला, त्वचा को स्वस्थ रखने वाला और मन को शांत करने वाला बताया गया हैं| चंदन का लेप शरीर की अतिरिक्त गर्मी को दूर करता हैं, जिससे बुखार और सिरदर्द में राहत मिलती हैं| इसका उपयोग पाचन तंत्र की समस्याओं, पेट की जलन और घबराहट को दूर करने में भी किया जाता हैं| त्वचा रोग जैसे मुंहासे, दाद-खुजली और झाईयों को चंदन का लेप ठीक करता हैं| आयुर्वेदिक तेलों और दवाईयों में चंदन का प्रयोग आम हैं, क्योंकि यह शरीर को भीतर से भी लाभ पहुँचाता हैं| चंदन हृदय की धड़कन को सामान्य करता हैं और मानसिक शांति प्रदना करता हैं| यही कारण हैं कि प्राचीन वैद्य और आधुनिक हर्बल विशेषज्ञ दोनों ही इसे स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम मानते हैं| चंदन के नियमित उपयोग से शरीर रोगों से लड़ने में सक्षम होता हैं और संपूर्ण जीवन में संतुलन बना रहता हैं|
4. मानसिक शांति का स्रोत:-
चंदन का सबसे बड़ा गुण हैं मानसिक शांति प्रदान करना| जब कोई व्यक्ति तनाव, चिंता या अनिद्रा से परेशान होता हैं तो चंदन का तेल और इसकी सुगंध बहुत लाभदायक होती हैं| इसकी खुशबू मस्तिष्क को गहराई से प्रभावित करती हैं और मन को संतुलित करती हैं| यही कारण हैं कि प्राचीन काल में ध्यान और साधना के समय ऋषि-मुनि चंदन का तिलक लगाते थे और चंदन की धुप जलाते थे| आधुनिक विज्ञान भी मानता हैं कि चंदन में पाए जाने वाले प्राकृतिक तत्व कार्टिसोल ( तनाव हार्मोन ) को कम करते हैं और मानसिक स्थिरता प्रदान करते हैं| योग और ध्यान करने वाले लोग आज भी चंदन का प्रयोग करते हैं क्योंकि इससे मन एकाग्र होता हैं और आंतरिक शांति मिलती हैं| विशेष बात यह हैं कि चंदन की खुशबू केवल मानसिक शांति ही नहीं देती, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करती हैं| यही कारण हैं कि इसे "प्राकृतिक मुड बूस्टर" कहा जाता हैं|
5. चंदन और आध्यात्मिक साधना:-
चंदन का संबंध गहराई से आध्यात्मिक साधना से हैं| प्राचीन काल में साधु-संत और योगी ध्यान के समय अपने माथे पर चंदन का तिलक लगाते थे| इसका उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी था| चंदन की ठंडक मस्तिष्क को शांत करती हैं और ध्यान के समय एकाग्रता बढ़ाती हैं| योग और तपस्या में मन का स्थिर रहना सबसे महत्वपूर्ण होता हैं, और चंदन इस स्थिरता को बनाए रखने में मदद करता हैं| आज भी कई आश्रमों, मठों और मंदिरों में ध्यान कक्षों में चंदन की धुप जलाई जाती हैं ताकि वातावरण पवित्र और शांत बना रहे| बौद्ध भिक्षु भी ध्यान और साधना के समय में भी जब लोग ध्यान और मेडिटेशन करते हैं तो अरोमा थेरेपी में चंदन का तेल या अगरबत्ती का प्रयोग करते हैं| इस प्रकार चंदन न केवल धार्मिक प्रतीक हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का साधन भी हैं|
6. त्वचा के लिए चंदन:-
चंदन का सबसे उपयोग त्वचा की सुंदरता और सेहत के लिए होता हैं| प्राचीन समय से महिलाएं और पुरुष दोनों ही चंदन का लेप चेहरे और शरीर पर लगाते आये हैं| चंदन की ठंडक त्वचा को तरोताजा करती हैं और धुप से झुलसने पर आराम देती हैं| मुंहासों, दाग-धब्बों और झाईयों को दूर करने के लिए चंदन का लेप आज भी घरेलू नुस्खों में प्रमुख हैं| इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, त्वचा को संक्रमण से बचाते हैं| कई आयुर्वेदिक और हर्बल ब्यूटी प्रोडक्ट्स में चंदन का पाउडर और तेल इस्तेमाल किया जाता हैं| वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह सिद्ध हैं कि चंदन का नियमित प्रयोग त्वचा की नमी को बनाए रखता हैं और झुर्रियों को कम करता हैं| यही कारण हैं कि इसे "नेचुरल स्किन केयर" का खजाना कहा जाता हैं| चंदन का लेप केवल सुंदरता ही नहीं बढ़ाता बल्कि यह त्वचा की आंतरिक परतों को भी स्वस्थ करता हैं|
7. चंदन का औद्योगिक महत्व:-
चंदन के पेड़ आर्थिक और औद्योगिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं| इसकी लकड़ी और तेल को 'सफेद सोना' कहा जाता हैं, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग बहुत अधिक हैं| इत्र, धूपबत्ती, अगरबत्ती, सौंदर्य प्रसाधन और औषधियां बनाने में चंदन का व्यापक उपयोग होता हैं| कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में चंदन की खेती और व्यापार से हजारों लोगों को रोजगार मिलता हैं| चंदन का तेल बहुत महंगा होता हैं और इसे सौंदर्य व स्वास्थ्य उद्योग में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता हैं| यहाँ तक कि विदेशों में भी चंदन के उत्पाद भारतीय पहचान बन चुके हैं| हालांकि, इसकी बढ़ती मांग के कारण अवैध कटाई की समस्या भी सामने आती हैं| इसीलिए सरकार ने इसके व्यापार और कटाई पर विशेष नियम बनाए हैं| औद्योगिक दृष्टि से चंदन न केवल आय का स्रोत हैं बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी हैं|
8. पर्यावरण में योगदान:-
चंदन का पेड़ न केवल धार्मिक और औद्योगिक रूप से उपयोगी हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं| यह पेड़ वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता हैं और प्रदुषण कम करता हैं| इसकी पत्तियाँ और जड़ें मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करती हैं| चंदन की खुशबू वातावरण को शुद्ध और शांत बनाती हैं, जिससे आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हैं| वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि चंदन के वृक्ष हवा में मौजूद कई हानिकारक बैक्टीरिया को भी कम करते हैं| यही कारण हैं कि मंदिरों और आश्रमों के आसपास चंदन के पेड़ लगाए जाते थे| आधुनिक समय में बढ़ते प्रदुषण और ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए चंदन के पेड़ और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं| अगर हम इनके संरक्षण और वृक्षारोपण पर ध्यान दे तो यह पर्यावरण को स्वच्छ और संतुलित बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं|
9. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना:-
चंदन न केवल बाहरी उपयोग के लिए बल्कि आंतरिक सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं| इसमें ऐसे प्राकृतिक तत्व पाए जाते हैं जो शरीर की रोग प्रतोरोधक क्षमता ( Immunity ) को बढ़ाते हैं| आयुर्वेद में चंदन का सेवन बुखार, सिरदर्द, पेट की जलन और कई तरह की बीमारियों में कराया जाता हैं| चंदन का तेल शरीर को बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने की शक्ति प्रदान करता हैं| आधुनिक विज्ञान ने भी यह साबित किया हैं कि चंदन में मौजूद प्राकृतिक यौगिक शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं| यही कारण हैं कि इसे "प्राकृतिक इम्यून बूस्टर" कहा जाता हैं| चंदन का नियमित प्रयोग शरीर को संक्रमण से बचाता हैं और लंबे समय तक स्वस्थ बनाए रखता हैं| इस दृष्टि से देखा जाए तो चंदन केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं बल्कि सेहत का खजाना भी हैं|
10. चंदन और तापमान नियंत्रण:-
चंदन की सबसे अनोखी विशेषता यह हैं कि इसकी लकड़ी छूने पर हमेशा ठंडी महसूस होती हैं| चाहे मौसम कितना भी गर्म क्यों न हो, चंदन का पेड़ और इसकी लकड़ी ठंडी रहती हैं| यही कारण हैं कि गर्मियों में लोग चंदन का लेप शरीर पर लगाते हैं ताकि गर्मी से राहत मिल सके| यह शरीर की अतिरिक्त गर्मी को कम करता हैं और पित्त दोष को शांत करता हैं| वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो चंदन की लकड़ी में मौजूद प्राकृतिक तत्व शरीर के तापमान को नियंत्रित करते हैं| यही कारण हैं कि गर्मियों में मंदिरों में शिवलिंग पर चंदन चढ़ाया जाता हैं और भक्त इसे अपने माथे पर लगाते हैं| यह केवल धार्मिक आस्था नहीं बल्कि एक प्राकृतिक विज्ञान हैं जो हमारे जीवन को संतुलित करता हैं|
11. धार्मिक अनुष्ठानों में चंदन:-
भारतीय धार्मिक अनुष्ठानों में चंदन का स्थान सर्वोच्च हैं| किसी भी पूजा, यज्ञ या संस्कार में चंदन का प्रयोग अनिवार्य माना जाता हैं| देवी-देवताओं की प्रतिमाओं पर चंदन का लेप चढ़ाना, शिवलिंग पर चंदन अर्पित करना और तिलक में चंदन लगाना प्राचीन परंपरा का हिस्सा हैं| इसका धार्मिक महत्व इतना गहरा हैं कि इसे शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता हैं| हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध और जैन धर्म में भी चंदन का विशेष उपयोग किया जाता हैं| बौद्ध भिक्षु ध्यान और पूजा के समय चंदन की धुप जलाते हैं, क्योंकि इसकी सुगंध मन को शांति देती हैं| वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह परंपरा सार्थक हैं क्योंकि चंदन की खुशबू मस्तिष्क को ठंडक देती हैं और घरों की पूजा में चंदन के बिना पूजा अधूरी मानी जाती हैं| इससे स्पष्ट हैं कि चंदन केवल पेड़ नहीं बल्कि आस्था का आधार हैं|
12. चंदन और सुगंध चिकित्सा:-
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में "अरोमा थेरेपी" का महत्व लगातर बढ़ रहा हैं और इसमें चंदन का स्थान अत्यंत ख़ास हैं| चंदन का तेल और इसकी खुशबू मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने में अद्भुत काम करती हैं| इसकी सुगंध नर्वस सिस्टम पर सकारात्मक असर डालती हैं और नींद की समस्या को दूर करती हैं| यही कारण हैं कि चंदन के तेल का प्रयोग परफ्यूम, अगरबत्ती और अरोमा कैंडल्स में किया जाता हैं| वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि चंदन की महक से शरीर में तनाव हार्मोन का स्तर घटता हैं और मन में सकारात्मकता बढ़ती हैं| ध्यान और योग करने वाले लोग चंदन की खुशबू का प्रयोग करते हैं ताकि साधना और भी प्रभावी हो सके| यह सुगंध चिकित्सा न केवल मानसिक शांति देती हैं बल्कि शारीरिक सेहत को भी संतुलित करती हैं| इस दृष्टि से देखा जाए तो चंदन आधुनिक और प्राचीन दोनों चिकित्सा प्रणालियों का हिस्सा हैं|
13. आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व:-
चंदन का पेड़ न केवल धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी भारत की पहचान हैं| चंदन की लकड़ी और तेल को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत ऊँची कीमत मिलती हैं| यही कारण हैं कि इसे "सफेद सोना" कहा जाता हैं| कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में चंदन का व्यापार और खेती हजारों परिवारों के लिए रोजगार का साधन हैं| सांस्कृतिक रूप से देखें तो भारतीय शिल्पकला और परंपरा में भी चंदन का गहरा स्थान हैं| चंदन से बनी मूर्तियाँ, सजावटी वस्तुएं और धुप दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं| यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं और हमारी प्राचीन विरासत को दर्शाता हैं| हालांकि, बढ़ती मांग और अवैध कटाई ने चंदन को दुर्लभ बना दिया हैं| इसलिए इसका संरक्षण और नियंत्रित व्यापार अत्यंत आवश्यक हैं ताकि यह परंपरा और आर्थिक संसाधन दोनों सुरक्षित रह सकें|
14. चंदन और धार्मिक प्रतीक:-
चंदन को धार्मिक प्रतीकों में सबसे पवित्र माना जाता हैं| विवाह, यज्ञ और त्योहारों में चंदन का प्रयोग शुभता और शुद्धता का द्योतक हैं| दूल्हा-दुल्हन के माथे पर चंदन का तिलक लगाना केवल परंपरा नहीं बल्कि यह मान्यता हैं कि इससे वैवाहिक जीवन में शांति और समृद्धि आती हैं| धार्मिक ग्रंथों में भी उल्लेख हैं कि चंदन भगवान को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम साधन हैं| बौद्ध धर्म में भी चंदन बुद्ध की साधना और उपदेशों से जुड़ा हुआ हैं| चंदन का तिलक केवल एक धार्मिक प्रतीक प्रतीक नहीं बल्कि ऊर्जा और आस्था का संचारक हैं| आधुनिक विज्ञान भी इस मान्यता की पुष्टि करता हैं क्योंकि माथे पर चंदन लगाने से मस्तिष्क को ठंडक मिलती हैं और एकाग्रता बढ़ती हैं| इस प्रकार, चंदन एक पेड़ से कहीं अधिक हैं - यह आस्था, शांति और संस्कृति का जीवंत प्रतीक हैं|
15. संरक्षण की आवश्यकता:-
चंदन का पेड़ आज विलुप्त होने के कगार पर हैं इसकी लकड़ी और तेल की बढ़ती मांग ने अवैध कटाई को बढ़ावा दिया हैं| यही कारण हैं कि सरकार ने चंदन की कतई और व्यापार पर सख्त नियम लागू किए हैं| यदि हम समय रहते इसके संरक्षण पर ध्यान नहीं देंगे तो आने वाली पीढियां केवल किताबों में ही इसके महत्व को पढ़ेंगी| चंदन केवल आर्थिक संसाधन नहीं बल्कि हमारी संस्कृति, धर्म और चिकित्सा का आधार हैं| इसका संरक्षण केवल पेड़ बचाना नहीं बल्कि हमारी धरोहर और परंपरा को वृक्षारोपण को बढ़ावा दे और इसके महत्व को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं| चंदन का संरक्षण पर्यावरण को भी लाभ देगा और हमारी धार्मिक आस्थाओं को भी जीवित रखेगा| इसलिए हम सबकी जिम्मेदारी हैं कि इस "सफेद सोने" को बचाएं और आने वाले समय के लिए सुरक्षित रखें|
16. चंदन की उत्पत्ति, खेती और विकास:-
चंदन का पेड़ मुख्य रूप से भारत में पाया जाता हैं और यह हमारी प्राचीन संस्कृति से जुड़ा हुआ हैं| भारत में चंदन की सबसे अधिक खेती कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में होती हैं| कर्नाटक को तो "चंदन की धरती" कहा जाता हैं क्योंकि यहाँ परम्परागत रूप से इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती आई हैं| इसके अलावा इंडोनेशिया, श्रीलंका, नेपाल और ऑस्ट्रेलिया में भी चंदन के पेड़ पाए जाते हैं| भारत में विशेष रूप से मैसूर का चंदन पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं|
चंदन के पेड़ को तैयार होने में लंबा समय लगता हैं| यह वृक्ष धीरे-धीरे बढ़ता हैं और इसकी पूरी परिपक्वता आने में लगभग 15 से 20 साल का समय लगता हैं| खास बात यह हैं कि चंदन की सबसे कीमती चीज उसकी हृदय-काष्ठ ( Heartwood ) होती हैं, जिसमें सुगंधित तेल पाया जाता हैं| यह हिस्सा केवल तब बनता हैं जब पेड़ परिपक्व होता हैं| यही कारण हैं कि इसकी कटाई और उत्पादन समय लेने वाला होता हैं|
खेती की दृष्टि से चंदन का पेड़ शुष्क और उपोष्णकटिबन्धीय ( Tropical ) जलवायु में अच्छी तरह बढ़ता हैं| इसे कम वर्ष वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता हैं| इसकी जड़ें अन्य पेड़ों की जड़ों से पोषण खींचती हैं, इसलिए इसे "आधा परजीवी वृक्ष" भी कहा जाता हैं| आज सरकार ने चंदन कि खेती को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियाँ बनाई हैं ताकि किसान इसकी खेती करके आर्थिक लाभ उठा सकें|
* निष्कर्ष:-
चंदन का पेड़ भारतीय संस्कृति, धर्म, आयुर्वेद और विज्ञान का अद्भुत संगम हैं| यह केवल एक पेड़ नहीं बल्कि हमारी परंपराओं, मान्यताओं और जीवनशैली का हिस्सा हैं| मंदिरों में पूजा-अर्चना से लेकर योग, ध्यान और आयुर्वेदिक चिकित्सा तक, चंदन का महत्व हर जगह दिखाई देता हैं| इसकी सुगंध मन को शांति देती हैं, इसका लेप शरीर को ठंडक पहुँचाता हैं और इसका तेल रोगों से लड़ने में सहायक होता हैं| यही कारण हैं कि इसे "सफेद सोना" कहा गया है|
वैज्ञानिक दृष्टि से देखने तो चंदन में एंटीसेप्टिक, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं जो शरीर और मन दोनों के लिए लाभकारी हैं| यह त्वचा की सुंदरता को बनाए रखता हैं, मानसिक तनाव को कम करता हैं और रोग प्रतोरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं| इसके अलावा, चंदन का पेड़ पर्यावरण को भी शुद्ध करता हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता हैं| आर्थिक दृष्टि से चंदन की लकड़ी और तेल पुरे विश्व में प्रसिद्ध हैं, जो भारत की सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक संसाधन दोनों को मजबूत बनाते हैं|
हालांकि, दुःख की बात यह हैं कि अवैध कटाई और अत्यधिक मांग के कारण चंदन के पेड़ आज विलुप्ति के कगार पर हैं| एक पेड़ परिपक्व होने में 15 से 20 साल लगते हैं, और इसी कारण इनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक हैं| यदि हम आज इसका ख्याल नहीं रखेंगे तो आने वाली पीढियां केवल किताबों में इसके महत्व को पढ़ेंगी|
इसलिए हमें चाहिए कि चंदन के पेड़ों की खेती और संरक्षण को प्राथमिकता दें| यह न केवल हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए आवश्यक हैं बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखने का साधन हैं| चंदन का पेड़ वास्तव में वह अमूल्य धोढ़र हैं जो हमरी आस्था, विज्ञान और प्रकृति - तीनो को जोड़ता हैं|