"विश्वकर्मा पूजा 2025: श्रम, सृजन और समर्पण का महापर्व"

 *  प्रस्तावना  *

भारत में हर त्योहार सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं रखता, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश भी देता हैं| उन्ही खास पर्वो में से एक हैं विश्वकर्मा पूजा| इसे "श्रमिकों और कारीगरों का त्योहार" भी कहा जाता हैं| यह पर्व भगवान विश्वकर्मा को समर्पित हैं, जिन्हें सृष्टि का प्रथम इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता हैं| कहा जाता हैं कि स्वर्ग के महल, भगवान कृष्ण का द्वारका नगर, और हस्तिनापुर की नगरी भी भगवान विश्वकर्मा की अद्भुत कारीगरी से निर्मित हुए थे|

विश्वकर्मा पूजा 2025 इस साल 17 सितंबर को मनायी जाएगी| इस दिन विशेष रूप से कारीगर, मजदूर, इंजिनियर, आर्किटेक्ट और मशीनों से जुड़े लोग पूजा-अर्चना करते हैं| फैक्टरियों, ऑफिसों और वर्कशॉप्स में औजारों और मशीनों की विशेष पूजा की जाती हैं| यह दिन श्रम की महिमा और मेहनतकश वर्ग के योगदान को सम्मान देने का प्रतीक हैं|

आज जब भारत डिजिटल और टेक्नोलॉजी के युग में आगे बढ़ रहा हैं, तब भी यह पर्व हमें यह याद दिलाता हैं कि हर मशीन, हर निर्माण और हर आविष्कार के पीछे मेहनतकश हाथ और दिमाग का योगदान होता हैं| 

इस ब्लॉग में आज हम विस्तार से जानेंगे विश्वकर्मा पूजा का इतिहास, महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त और आधुनिक जीवन पर इसका प्रभाव|

1. भगवान विश्वकर्मा कौन थे?

भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का प्रथम शिल्पी, वास्तुकार और अभियंता माना जाता हैं| हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, उन्होंने न केवल देवताओं के महलों का निर्माण किया बल्कि अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्र और अद्भुत नगर भी बनाए| त्रेतायुग में उन्होंने भगवान राम के लिए "पुष्पक विमान" का निर्माण किया था और द्वापर युग में भगवान कृष्ण के लिए द्वारका नगरी को बसाया था| हस्तिनापुर और इंद्रपुरी ( स्वर्ग का महल ) जैसी अद्भुत नगरी भी उनके ही शिल्प कौशल का परिणाम मानी जाती हैं|

विश्वकर्मा जी को ब्रह्मा जी का अवतार कहा जाता हैं| उन्हें कारीगरों, मजदूरों, इंजीनियरों, आर्किटेक्टस और शिल्पकारों का अधिष्ठाता देवता माना जाता हैं| यही कारण हैं कि विश्वकर्मा पूजा के दिन श्रमिक वर्ग, फैक्ट्री मालिक, मशीनों और औजारों से जुड़े लोग खास श्रद्धा और आस्था के साथ पूजा करते हैं|

उनकी प्रतिमा अक्सर चार हाथों वाली दिखाई जाती हैं, जिसमें वे औजार और वास्तु संबंधी उपकरण धारण किए होते हैं| यह प्रतीक हैं सृजन, नवाचार और परिश्रम का| भगवान विश्वकर्मा का पूजन केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता हैं कि मानव जीवन में मेहनत और रचनात्मकता का कितना बड़ा महत्व हैं|

2. विश्वकर्मा पूजा का इतिहास और उत्पत्ति:-

विश्वकर्मा पूजा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही हैं| धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ने न केवल स्वर्ग और द्वारका जैसे नगर बनाए बल्कि देवताओं के अस्त्र-शस्त्र भी तैयार किए| यही कारण हैं कि उन्हें सृष्टि का प्रथम इंजीनियर कहा जाता हैं|

पुराणों में वर्णित हैं कि जब भी देवताओं को किसी दिव्य निर्माण की आवश्यकता होती थी, तब विश्वकर्मा जी ही उसका निर्माण करते थे| उन्होंने त्रिशूल, सुदर्शन चक्र और इंद्र का वज्र जैसे दिव्य शस्त्र बनाए| महाभारत के अनुसार, पांडवों का इन्द्रप्रस्थ महल भी विश्वकर्मा जी की कारीगरी का उदहारण हैं|

ऐसा माना जाता हैं कि मध्यकाल में जब औद्योगिक और हस्तशिल्प कार्य तेजी से बढ़ने लगे, तब मजदूरों और कारीगरों ने भगवान विश्वकर्मा को अपनी शक्ति और प्रेरणा का स्रोत मानते हुए हर साल उनकी पूजा करना शुरू किया| धीरे-धीरे यह परंपरा पुरे भरत में फ़ैल गई और अब यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता हैं बल्कि औद्योगिक जगत में भी इसे विशेष स्थान प्राप्त हैं|

इस प्रकार, विश्वकर्मा पूजा की उत्पत्ति हमें श्रम, शिल्प और सृजन की गौरवशाली परंपरा से जोड़ती हैं|

3. विश्वकर्मा पूजा की तिथि और मुहूर्त 2025:-

विश्वकर्मा पूजा 2025 इस साल 17 सितंबर ( बुद्धवार ) को मनायी जाएगी| हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पूजा कन्या संक्रांति के दिन मनायी जाती हैं| उस दिन सूर्य देव सिंह राशी से कन्या राशी में प्रवेश करते हैं| यही समय भगवान विश्वकर्मा की आराधना के लिए सबसे शुभ माना जाता हैं|

पंडितों के अनुसार, 17 सितंबर को पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः काल से लेकर दोपहर तक रहेगा| अधिकतर लोग सुबह ही औजारों और मशीनों की सफाई कर उन्हें सजाते हैं और फिर पूजा-अर्चना करते हैं| कार्यशालाओं, फैक्ट्रियों और दफ्तरों में विशेष पूजा की जाती हैं| कहीं-कहीं पर पुरे दिन औजारों का उपयोग नहीं किया जाता ताकि भगवान विश्वकर्मा से आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके|

इस दिन विशेष रूप से श्रमिक वर्ग, तकनीकी विशेषज्ञ, इंजीनियर्स और उद्योगपति श्रद्धा और आस्था के साथ पूजा करते हैं| पूजा का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि व्यावहारिक भी हैं, क्योंकि यह श्रम और मेहनत की महत्ता को दर्शाता हैं|

इस प्रकार 2025 में विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को पुरे भारत में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जाएगी, और यह दिन मेहनत और सृजन की पूजा का प्रतीक बनेगा|

4. विश्वकर्मा पूजा का महत्व:-

विश्वकर्मा पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि यह श्रम और सृजन की पूजा हैं| यह पर्व हमें यह याद दिलाता हैं कि प्रगति, तकनीकी विकास और औद्योगिक उन्नति का आधार मेहनतकश हाथों और सृजनशील दिमागों में छिपा हैं|

इस दिन मजबूर, कारीगर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट और मशीनों से जुड़े लोग भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं| फैक्ट्रियों और कार्यशालाओं में औजारों को सजाया जाता हैं उनकी आराधना की जाती हैं| इससे यह संदेश मिलता हैं कि हर औजार और मशीन हमारी आजीविका और प्रगति का साधन हैं|

धार्मिक दृष्टि से भी इसका महत्व बहुत गहरा हैं| माना जाता हैं की भगवान विश्वकर्मा की कृपा से काम में सफलता मिलती हैं, दुर्घटनाएं कम होती हैं और जीवन में समृद्धि आती हैं|

सामाजिक दृष्टिकोण से यह पर्व हमें सिखाता हैं कि श्रम का सम्मान करना चाहिए| समाज का हर वर्ग, चाहे वह मजदुर हो या वैज्ञानिक, अपने-अपने क्षेत्र में योगदान देता हैं और इसी योगदान से समाज आगे बढ़ता हैं|

इस प्रकार विश्वर्क्मा पूजा का महत्व श्रम, सृजन और समाज में समानता को बढ़ावा देना हैं|

5. विश्वकर्मा पूजा की विधि:-

विश्वकर्मा पूजा में सबसे पहले औजारों और मशीनों की सफाई की जाती हैं| कार्यस्थल को अच्छे से सजाया जाता हैं और पूजा स्थल पर भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित की जाती हैं| फुल, धुल, दीपक और प्रसाद से पूजा आरंभ होती हैं|

इस दिन विशेष रूप से औजारों की पूजा की जाती हैं| चाहे वह हथौड़ी हो, आरी हो, कंप्यूटर हो या बड़ी-बड़ी मशीनें - हर उपकरण को भगवान विश्वकर्मा का प्रसाद मानकर पूजित किया जाता हैं| इसके बाद हवन और मंत्रोच्चारण के साथ भगवान विश्वकर्मा से प्रार्थना की जाती हैं कि कार्य में सफलता मिले और दुर्घटनाएं न हों|

फैक्ट्रियों और आफिसों में अक्सर इस दिन सामूहिक पूजा का आयोजन होता हैं| पूजा के बाद कर्मचारियों और मजदूरों को प्रसाद और भोजन वितरित किया जाता हैं| कहीं-कहीं मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं|

इस विधि से की गई पूजा न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती हैं, बल्कि कार्यस्थल पर सकारात्मक ऊर्जा और सामूहिक सहयोग की भावना भी पैदा करती हैं| यही कारण हैं कि इस पर्व को पुरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता हैं|

6. विश्वकर्मा पूजा और मजदुर वर्ग का संबंध:-

विश्वकर्मा पूजा विशेष रूप से मजदूर वर्ग और कारीगरों का पर्व माना जाता हैं| यह दिन उन मेहनतकश लोगों के सम्मान का प्रतीक हैं, जो अपने श्रम से समाज और देश का निर्माण करते हैं| चाहे वह लोहार हो, बढ़ई हो, राजमिस्त्री हो या फैक्ट्री में काम करने वाला कर्मचारी - सभी इस दिन भगवान विश्वकर्मा को याद करते हैं|

मजदुर वर्ग का जीवन मेहनत और संघर्ष से भरा होता हैं| उनकी मेहनत से ही ऊँची-ऊँची इमारतें, पुल, सड़कें, मशीनें और उद्योग खड़े होते हैं| लेकिन अक्सर समाज में उनका योगदान नजरअंदाज कर दिया जाता हैं| विश्वकर्मा पूजा हमें यह संदेश देती हैं कि श्रम ही सबसे बड़ा पूज्य हैं और श्रमिक समाज के सच्चे निर्माता हैं|

इस दिन मजदूर वर्ग न केवल पूजा करता हैं, बल्कि सामूहिक रूप से उत्सव भी मनाता हैं| कई जगहों पर छुट्टी दी जाती हैं ताकि श्रमिक परिवारों के साथ समय बिता सकें और त्योहार की ख़ुशी साझा कर सकें|

इस प्रकार, विश्वकर्मा पूजा मजदूर वर्ग को सम्मान और प्रेरणा देने का माध्यम हैं और समाज को यह सिखाती हैं कि श्रम का आदर करना हर किसी का कर्तव्य हैं|

7. विश्वकर्मा पूजा और आधुनिक तकनीक:-

आज के समय में जब दुनिया डिजिटल और तकनीकी युग में प्रवेश कर चुकी हैं, तब भी विश्वकर्मा पूजा का महत्व कम नहीं हुआ हैं| बल्कि यह त्योहार अब और भी प्रासंगिक हो गया हैं क्योंकि भगवान विश्वकर्मा को टेक्नोलॉजी और इंजिनियरिंग के आदिपुरुष माना जाता हैं| 

कारखानों और फैक्ट्रियों के साथ-साथ आजकल आईटी कंपनियां, सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स और डिजिटल वर्कर्स भी इस दिन विशेष पूजा करते हैं| कंप्यूटर, सर्वर, लैपटॉप और ने डिजिटल उपकरणों की पूजा की जाती हैं| कई कंपनियों में इस दिन विशेष आयोजन किए जाते हैं ताकि कर्मचारियों में एकजुटता और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे|

इसका संदेश यह हैं कि चाहे समय कितना भी बदल जाए, तकनीक कितनी भी आधुनिक क्यों न हो, लेकिन उसकी नींव हमेशा मेहनत और सृजनशीलता पर ही टिकी रहती हैं| भगवान विश्वकर्मा का आशीर्वाद लिए बिना कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता|

इसलिए आज की पीढ़ी के इंजीनियर्स और टेक्नोलॉजीस्ट भी इस पर्व को पूरी श्रद्धा से मानते हैं और इसे अपनी सफलता व प्रगति का आधार मानत हैं|

8. भारत के विभिन्न राज्यों में विश्वकर्मा पूजा:-

विश्वकर्मा पूजा पुरे भारत में मनाई जाती हैं, लेकिन अलग-अलग राज्यों में इसकी परंपराए थोड़ी भिन्न हैं|

पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में यह पर्व बहुत भव्य रूप से मनाया जाता हैं| यहाँ पतंगबाजी भी इस दिन का खास हिस्सा होती हैं| आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता हैं|

ओडिशा और असम में फैक्ट्रियों और कार्यशालाओं में बड़े स्तर पर पूजा होती हैं| लोग औजारों और मशीनों को सजाकर आरती करते हैं|

उत्तर भारत के राज्यों में यह पर्व मुख्य रूप से मजदूर और कारीगर वर्ग द्वारा मनाया जाता हैं| यहाँ सामूहिक भोज और उत्सव का आयोजन होता हैं|

दक्षिण भारत में भी इंजीनियर्स और तकनीकी संस्थान इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं|

हर क्षेत्र की परंपरा अलग होते हुए भी भाव एक ही हैं - श्रम और तकनीक की पूजा| यही वजह हैं कि विश्वकर्मा पूजा एक राष्ट्रीय पर्व जैसा स्वरूप ले चुकी हैं, जो पुरे भारत में श्रम की महिमा को दर्शाता हैं| 

9. विश्वकर्मा पूजा और सामाजिक एकता:-

विश्वकर्मा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि यह सामाजिक एकता और भाईचारे का पर्व हैं| इस दिन मजदुर, कारीगर, इंजीनियर, व्यापारी और उद्योगपति - सभी एक साथ मिलकर पूजा करते हैं|

कारखानों में मालिक और कर्मचारी एक ही मंच पे बैठकर पूजा-अर्चना करते हैं| इससे कार्यस्थल पर आपसी सहयोग और एकजुटता बढ़ती हैं| यह दिन हमें यह संदेश देता हैं कि किसी भी समाज की प्रगति श्रम और पूंजी दोनों के संतुलन से होती हैं|

इसके अलावा इस दिन कई स्थानों पर सामूहिक भोज और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जिसमे हर वर्ग के लोग भाग लेते हैं| यह सामाजिक एकजुटता और सहयोग की भवना को मजबूत करता हैं|

धार्मिक दृष्टिकोण से भी यह त्योहार हमें सिखाता हैं कि भगवान विश्वकर्मा ने पुरे ब्रह्मांड की रचना की, और उसी से हम सब जुड़े हुए हैं| इसलिए समाज का हर वर्ग महत्वपूर्ण हैं और सबको एक-दुसरे का सम्मान करना चाहिए|

11. विश्वकर्मा पूजा और औद्योगिक सुरक्षा:-

विश्वकर्मा पूजा का एक बड़ा महत्व औद्योगिक सुरक्षा से भी जुड़ा हैं| इस दिन कारखानों और फैक्ट्रियों में मशीनों की सफाई और उनकी मरम्मत की जाती हैं| कई स्थानों पर इस दिन मशीनों को आराम दिया जाता हैं और पुरे दिन उनका इस्तेमाल नहीं किया जाता हैं| यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था नहीं बल्कि व्यावहारिक दृष्टि से भी बेहद आवश्यक हैं|

माना जाता हैं कि जब हम औजारों की पूजा कर उनका सम्मान करते हैं, तो उनके प्रयोग में सावधानी और सुरक्षा की भावना और अधिक मजबूत होती हैं| इसी वजह से फैक्ट्रियों में इस दिन विशेष तौर पर श्रमिकों को सुरक्षा नियमों के पालन की प्रेरणा दी जाती हैं|

एस प्रकार विश्वकर्मा पूजा न केवल आस्था का पर्व हैं बल्कि औद्योगिक सुरक्षा और उपकरणों के संरक्षण का संदेश भी देती हैं|

12. विश्वकर्मा पूजा और शिक्षा जगत:-

विश्वकर्मा पूजा केवल मजदूरों या फैक्ट्री तक सीमित नहीं हैं, बल्कि शिक्षा जगत में भी इसका महत्व हैं| इंजीनियरिंग कॉलेज, पालीटेक्निक संस्थान और तकनीक विश्वविद्यालयों में इस दिन विशेष आयोजन किए जाते हैं| छात्र-छात्राएं भगवान विश्वकर्मा की पूजा कर अपने करियर और पढ़ाई में सफलता की कामना करते हैं|

कई जगह पर प्रोजेक्ट प्रदर्शनी और तकनीकी प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं| यह छात्रों को उनकी पढ़ाई और शोध कार्यो के महत्व का अहसास कराता हैं|

इस प्रकार विश्वकर्मा पूजा नई पीढ़ी को भी यह संदेश देती हैं कि शिक्षा केवल डिग्री तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उसे समाज और तकनीकी विकास में योगदान देना चाहिए|

13. विश्वकर्मा पूजा और ग्रामीण भारत:-

ग्रामीण भारत में विश्वकर्मा पूजा का रूप और भी रोचक होता हैं| यहान्किसन अपने खेती के उपकरण जैसे हल, बैलगाड़ी, टैक्टर और मोटर की पूजा करते हैं| गाँवों में सामूहिक रूप से पूजा और हवन का आयोजन किया जाता हैं|

ग्रामीण स्तर पर पर्व किसानों को याद दिलाता हैं कि उनका श्रम और उनके उपकरण ही उनकी समृद्धि का आधार हैं| इस दिन गाँवों में मेलों का आयोजन भी होता हैं, जहाँ लोग मिलकर उत्सव मनाते हैं|

इस प्रकार विश्वकर्मा पूजा ग्रामीण समाज में कृषि और श्रम की महत्ता को उजागर करती हैं और किसानों को उनके श्रम पर गर्व करने की प्रेरणा देती हैं|

14. विश्वकर्मा पूजा और महिला योगदान:-

अक्सर माना जाता हैं कि विश्वकर्मा पूजा केवल मजदूर या इंजीनियरों का त्योहार हैं, लेकिन इसमे महिलाओं का योगदान भी कम नही हैं| कई महिलाएं औद्योगिक क्षेत्रों, तकनीकी संस्थानों और हस्तशिल्प कार्यो में अहम भूमिका निभाती हैं|

इस दिन महिलाएं भी पूजा में भाग लेती हैं और अपने कार्यस्थल या घर में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की पूजा करती हैं| कुछ स्थानों पर महिलाएं पारंपरिक हस्तकला जैसे सिलाई, बुनाई और कढ़ाई के उपकरणों की भी आराधना करती हैं|

इससे यह संदेश मिलता हैं कि सृजन और मेहनत केवल पुरुषों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि महिलाओं की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं|

15. विश्वकर्मा पूजा और पर्यावरण संदेश:-

विश्वकर्मा पूजा केवल औजारों की पूजा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह सस्टेनेबल डेवलपमेंट का भी प्रतीक हैं| भगवान विश्वर्क्मा ने जब ब्राह्मण का निर्माण किया, तो उसमे प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन रखा|

आज के समय में जब औद्योगिकरण से प्रदुषण बढ़ रहा हैं, तब यह पर्व हमें याद दिलाता हैं कि विकास और पर्यावरण दोनों का संतुलन ज़रूरी हैं| इस दिन कई फैक्ट्रियों और संस्थानों में पेड़ लगाए जाते हैं और श्रमिकों को स्वच्छता व पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जाता हैं|

इस प्रकार विश्वर्क्मा पूजा हमें प्रेरित करती हैं कि हम तकनीक का विकास करें, लेकिन साथ ही प्रकृति और पर्यावरण का भी सम्मान करें|

16. विश्वकर्मा पूजा और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण:-

विश्वकर्मा पूजा केवल भारत तक सीमित नहीं हैं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं| खासकर नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और भूटान में यह त्योहार बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता हैं क्योंकि वहां भी मजदुर और कारीगर वर्ग भगवान विश्वकर्मा को अपना आराध्य मानते हैं|

विदेशों में बसे भारतीय तकनीकी और इंजीनियरिंग से जुड़े लोग इस दिन विशेष पूजा करते हैं और सामूहिक आयोजन करते हैं| अमेरिका, ब्रिटेन और खाड़ी देशों में भारतीय समुदाय द्वारा वर्कशॉप, फैक्ट्रियों और दफ्तरों में पूजा आयोजित की जाती हैं|

इससे यह संदेश मिलता हैं कि जहाँ भी भारतीय श्रमिक या तकनीकी विशेषज्ञ मौजूद हैं, वहां विश्वकर्मा पूजा श्रम और सृजन का उत्सव बनकर मनाई जाती हैं| यह भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान को भी मजबूत करती हैं|

17. विश्वकर्मा पूजा और भविष्य की संभावनाएं:-

विश्वकर्मा पूजा का महत्व आने वाले समय में और भी बढ़ेगा| जैसे-जैसे भारत आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं के साथ औद्योगिक और तकनीकी क्षेत्र में आगे बढ़ रहा हैं, वैसे-वैसे यह पर्व और प्रासंगिक होता जा रहा रहा हैं|

भविष्य में जब रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और हाई-टेक मशीनों का दौर होगा, तब भी विश्वकर्मा पूजा हमें यह याद दिलाएगी कि असली शक्ति मेहनत और सृजनशीलता में ही हैं| इस पर्व के जरिए आने वाली पीढियां श्रम का सम्मान करना सीखेंगी|

इसके अलावा सरकार और औद्योगिक संस्थान इस पर्व को "श्रमिक दिवस" की तरह भी और बड़े स्तर पर मना सकते हैं ताकि मजदुर वर्ग और तकनीकी विशेषज्ञों को सम्मान मिले|

इस प्रकार, विश्वकर्मा पूजा भविष्य में भी श्रम, तकनीक और समाज के विकास की रीढ़ बनी रहेगी| 

*  निष्कर्ष:-

विश्वकर्मा पूजा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं हैं, बल्कि यह श्रम, सृजन, तकनीक और सामाजिक एकता का प्रतीक हैं| भगवान विश्वकर्मा को ब्राह्मण का प्रथम शिल्पकार और देवताओं का महान वास्तुकार माना जात हैं| उन्होंने न केवल महलों, देवालयों और अस्त्र-शस्त्रों की रचना की, बल्कि इंसान को यह संदेश भी दिया कि मेहनत और रचनात्मकता ही जीवन की सच्ची पूंजी हैं|

आज के समय में जब हम मशीनों और तकनीक पर पूरी तरह निर्भर हो गए हैं, तब विश्वकर्मा पूजा हमें यह याद दिलाती हैं कि इन औजारों और उपकरणों का सम्मान करना उतना ही ज़रूरी हैं जितना कि उन्हें सही ढंग से उपयोग करना| यही वजह हैं कि मजदूर, कारीगर, इंजीनियर, किसान और उद्योगपति - सभी इस दिन अपने-अपने औजारों और कार्यस्थलों की पूजा करते हैं|

भारत के अलग-अलग हिस्सों में यह पर्व अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता हैं - कहीं पतंगबाजी, कहीं सामूहिक भोज तो कही फैक्ट्रियों और कॉलेजों में पूजा व सांस्कृतिक आयोजन| लेकिन हर जगह इसका उद्देश्य एक ही हैं - श्रम का सम्मान और सृजन की महिमा|

आधुनिक युग में इस पर्व का महत्व और बढ़ गया हैं| अब सिर्फ हथौड़ी और आरी ही नहीं, बल्कि कंप्युटर, लैपटॉप, सर्वर और हाई-टेक मशीनें भी विश्वकर्मा पूजा का हिस्सा बन गई हैं| यह हमें यह संदेश देती हैं कि चाहे तकनीक कितनी भी आधुनिक ही जाए, उसके पीछे मेहनत और मानव श्रम का महत्व हमेशा सर्वोपरि रहेगा|

इसके अलावा यह पर्व सामाजिक एकता और सहयोग की भावना को भी मजबूत करता हैं| इस दिन मालिक और मजदुर, दोनों एक साथ पूजा करते हैं| यह हमें सिखाता हैं कि प्रगति तभी संभव हैं जब श्रम और पूँजी एक-दुसरे के साथ संतुलन में हों|

भासिश्य की दृष्टि से देंखे तो विश्वकर्मा पूजा भारत की औद्योगिक, तकनीकी और सांस्कृतिक पहचान को और भी मजबूत करेगी| जब दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स की ओर बढ़ रही हैं, तब भी यह पर्व हमें याद दिलाता रहेगा कि असली शक्ति मेहनत, सृजनशीलता और मानवीय बुद्धि में हैं|

अतः विश्वकर्मा पूजा हमें यह प्रेंरा देती हैं कि हम हर प्रकार के श्रम का सम्मान करें, तकनीक का जिम्मेदारी से उपयोग करें और समाज में सहयोग व एकता की भावना को जीवित रखें| यही इस पर्व का वास्तविक संदेश हैं और यही कारण हैं कि यह आज भी उतना ही प्रासंगिक हैं जितना सदियों पहले था|




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