"मीरा बाई: कृष्ण प्रेम में डूबी अमर भक्त कवयित्री"

 *  प्रस्तावना  *

भारतीय संस्कृति में भक्ति आंदोलन का इतिहास बेहद समृद्ध और प्रेरणादायी रहा हैं| इस आंदोलन ने जहाँ समाज को जात-पात और रूढ़ियों से मुक्त करने की कोशिश की, वहीँ भगवान के प्रति व्यक्तिगत प्रेम और समर्पण को भी महत्व दिया| इस कड़ी में जो सबसे उज्ज्वल नाम सामने आता हैं, वह हैं मीरा बाई| वे राजस्थान की राजघराने में जन्मीं, लेकिन उनका जीवन राजसी वैभव से अधिक भक्ति और कृष्ण प्रेम के लिए जाना जाता हैं| मेरा बाई ने अपना जीवन पूरी तरह श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया था|



उनकी रचनाओं में वह दर्द भी झलकता हैं जो उन्हें समाज और परिवार से मिला, और वह आनंद भी महसूस होता हैं जो उन्हें अपने प्रभु की भक्ति में मिला| मीरा के भजनों ने न केवल साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि भक्ति मार्ग को भी एक नई दिशा दी| उन्होंने यह सिखाया कि सच्चा प्रेम और भक्ति किसी सीमा, जाति या समाज के बंधनों में नहीं बंध सकता|

मेरा बाई का जीवन संघर्ष, साहस और अटूट आस्था का प्रतीक हैं| उनकी कविता, उनका समर्पण और उनका अडिग विश्वास आज भी लोगों को प्रेरित करता हैं|

1. मीरा बाई का जन्म और परिवार:-

मीरा बाई का जन्म लगभग 1498 ईस्वी में राजस्थान के मवाद के कुड़की गांव ( पाली जिले ) में हुआ था| उनके पिता रतनसिंह राठौर राजपूत घराने से थे और उनकी माता विरकुमारी धार्मिक प्रवृत्ति वाली महिला थीं| मेरा बचपन से ही अत्यंत धार्मिक थीं| कहा जाता हैं की जब वे मात्र तीन वेश की थीं, तभी उन्होंने भगवान कृष्ण की मूर्ति देखकर उनसे विवाह करने की इच्छा व्यक्त की थी| उनके घराने में वैभव और राजसी ठाट-बाट की कोई कमी नहीं थी, लेकिन मीरा का मन बचपन से ही सांसारिक जीवन से दूर भगवान की भक्ति में रमा हुआ था| उनके ननिहाल और पितृकुल दोनों ही वीरता और धर्मनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे, इसलिए मीरा के संस्कारों में भी यह गुण आ गया| राजसी वातावरण के बीच पली-बढ़ी मीरा बाई का बचपन साधारण नहीं था, फिर भी उनका मन बाल्यकाल से ही कृष्ण की ओर आकर्षित हो चूका था| यही कारण हैं कि उन्हें अक्सर 'कृष्ण की दुल्हन' कहकर बुलाया जाता था|

2. बचपन से ही कृष्ण प्रेम:-

मीरा बाई का बचपन पूरी तरह श्रीकृष्ण प्रेम में डूबा हुआ था| तीन साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने एक बार विवाह समारोह देखा और अपनी माँ से पूछा- "मेरा दूल्हा कौन हैं?" इस पर उनकी माँ ने मजाक में कहा- "तेरे दुल्हे तो कृष्ण ही हैं|" बस उसी क्षण से मीरा ने कृष्ण को अपना पति मान लिया| बचपन में वे खिलौनों से खेलने की बजाय कृष्ण की मूर्ति के साथ समय बितातीं थीं| वे अपने बाल सखियों के साथ मिलकर नृत्य और भजन गाया करतीं| उनकी आँखों में बचपन से ही कृष्ण के प्रति अनोखी मोहब्बत और भक्ति का भाव झलकता था| राजघराने की बेटी होकर भी मीरा को राजसी एश्वर्य से कोई मोह नहीं था| उनका पूरा मन सिर्फ माखन चोर, ग्वाल बालक और वृंदावन बिहारी कृष्ण में रमा रहता| यही बाल्यकाल का संस्कार आगे चलकर उन्हें दुनिया की महान भक्त कवयित्री बना गया|

3. विवाह और राजघराने का जीवन:-

मीरा बाई का विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ था| भोजराज वीर, पराक्रमी और दयालु स्वभाव के थे| विवाह के बाद मीरा बाई का जीवन महलों की शानो-शौकत में व्यतीत होने लगा| लेकिन उनके लिए यह वैभव सिर्फ एक औपचारिकता थी| महलों में रहते हुए भी वे साधारण और षड्यंत्रों से दूर रहतीं और अपना समय कृष्ण भलती और भजनों में बिताती थीं| भोजराज मीरा के भक्ति भाव को समझते थे और उनका सम्मान करते थे| हालांकि, भोजराज के निधन के बाद मीरा के जीवन में अनेक कठिनाईयां आई| राजघराने में उन्हें कृष्ण भक्ति के कारण कई बार अपमान और विरोध का सामना करना पड़ा| लेकिन मीरा ने कभी भी अपने मार्ग को नहीं छोड़ा| उनका जीवन दिखता हैं कि जब किसी का मन प्रभु से जुड़ जाता हैं, तो सांसारिक वैभव और राजसी ठाठ भी फीके लगने लगते हैं|

4. समाज और परिवार का विरोध:-

मीरा बाई की कृष्ण भक्ति को परिवार और समाज ने स्वीकार नहीं किया| विवाह के बाद जब वे सार्वजनिक रूप से कृष्ण के भजन गाने और मंदिरों में नृत्य करने लगीं, तो राजघराने ने इसे अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ माना| परिवारवालों ने उन्हें कई बार समझाया कि वे महलों तक ही सीमित रहें, लेकिन मीरा का मन कृष्ण के दरबार में बस्ता था| यहाँ तक कि उनके देवर ने भी उनके खिलाफ कई बार षड्यंत्र रचे| कहा जाता हैं कि उन्हें विष का प्याला और नाग से भरा डिब्बा भी भेजा गया और नाग harmless हो गया| परिवार और समाज के दबाव के बावजूद मीरा कभी विचलित नहीं हुई| उन्होंने यह न्स्देश दिया कि भक्ति का मार्ग कठिन होता हैं, लेकिन सच्चे प्रेम और समर्पण के आगे साड़ी बाधाएँ छोटी हो जाती हैं|

5. मीरा की भक्ति और कृष्ण के प्रति समर्पण:-

मीरा बाई का जीवन भक्ति का सर्वोच्च उदहारण हैं| वे अपने आपको कृष्ण की दासी और प्रेमिका दोनों मानती थीं| उनके भजनों में वह दर्द दिखाई देता हैं जो उन्हें समाज से मिला, और वह आनंद भी झलकता हैं जो उन्हें कृष्ण की भक्ति से मिला| मीरा के भजन सिर्फ गीत नहीं थे, बल्कि वे उनके जीवन की सच्चाई थे| वे कृष्ण को अपने पति, मीटर और आराध्य मानती थीं| उन्होंने अपनी कविताओं में कृष्ण से संवाद किया, उनसे शिकायत भी की और प्रेम भी जताया| मीरा की भक्ति एकतरफा थीं, लेकिन उसमें इतनी सच्चाई और समर्पण था कि आज भी उनके भजन सुनकर लोगों का हृदय भावुक हो उठता हैं| उनका जीवन हमें यह सिखाता हैं कि सच्चा प्रेम और भक्ति किसी शर्त या बंधन में नहीं बंधता, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा का शाश्वत मिलन हैं|

6. मीरा के भजन और रचनाएँ:-

मीरा बाई की भक्ति का सबसे बड़ा प्रमाण उनके लिखे भजन हैं| उन्होंने अपने भावों को शब्दों में ढालकर ऐसे भजन रचे जो आज भी हर भक्त के हृदय को छु जाते हैं| उनके भजनों में विरह की पीड़ा, प्रेम का मधुर रस और कृष्ण के प्रति अटूट समर्पण साफ़ झलकता हैं| "पायो जी मैंने राम रतन धन पायो", "मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई" जैसे भजन आज भी हर घर में गाए जाते हैं| मीरा के भजन सिर्फ धार्मिक गीत नहीं थे, बल्कि वे उनके जीवन का सजीव अनुभव थे| उनकी भाषा साधारण और भावनाओं से भरी होती थी, जो आमजन के हृदय तक आसानी से पहुँच जाती थी| यही कारण हैं कि मीरा बाई आज भी भारतीय भक्ति साहित्य की अमर कवयित्री मानी जाती हैं|

7. भाषा और साहित्यिक शैली:-

मीरा बाई की काव्य भाषा ब्रजभाषा और राजस्थानी मिश्रित थी| उनकी रचनाओं में लोकभाषा की सहजता और भक्ति का गहन भाव एक साथ मिलता हैं| उन्होंने अपने भजनों को किसी अलंकार या कठिन शब्दों में नहीं बाँधा, बल्कि सीधे-साधे शब्दों में अपनी आत्मा की पुकार व्यस्त की| उनकी शैली में माधुर्य और सरलता का अद्भुत संगम हैं| मीरा की भाषा भावपूर्ण और आत्मीय हैं, जो पाठक या श्रोता के हृदय में सीधे उतर जाती हैं| साहित्य में मीरा ने यह सिद्ध कर दिया कि कविता तभी अमर बनती हैं जब वह डील से निकले और जनमानस से जुड़ सके| उनकी रचनाओं ने न सिर्फ भक्ति साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि स्त्री साहित्य को भी नई पहचान दी|

8. भक्ति आंदोलन में योगदान:-

भक्ति आन्दोलन भारत के सामाजिक और धार्मिक इतिहास का एक बड़ा अध्याय हैं| इस आंदोलन ने ईश्वर को पाने के लिए भक्ति और प्रेम को ही सबसे महत्वपूर्ण साधन माना| मीरा बाई ने इस आंदोलन में अहम भूमिका निभाई| उन्होंने यह दिखाया कि भक्ति किसी भी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं हैं, बल्कि हर किसी को समान रूप से उपलब्ध हैं| मीरा के भजनों ने समाज को यह सिखाया कि जाति-पात, ऊंच-निच और स्त्री-पुरुष का भेद भक्ति के मार्ग में कोई मायने नहीं रखता| वे भक्ति आंदोलन की सबसे बड़ी महिला प्रतीक बनीं| उनके योगदान ने न सिर्फ राजस्थान और उत्तर भारत को प्रभावित किया, बल्कि पुरे देश में उनके भजनों की गूंज सुनाई देने लगी|

9. मीरा और स्त्री सशक्तिकरण:-

मीरा बाई का जीवन स्त्री शक्ति और स्वतंत्रता का भी प्रतीक हैं| ऐसे समय में जब स्त्रियों को केवल घर की चारदीवारी तक सीमित रखा जाता था, मीरा ने समाज के बंधनों को तोड़कर अपनी राह खुद बनाई| उन्होंने परिवार और राजघराने के दबाव को नकारते हुए कृष्ण भक्ति को चुना| उनके जीवन से यह संदेश मिलता हैं कि स्त्री भी अपनी इच्छाओं और विचारों के अनुसार जीवन जी सकती हैं| मीरा ने भक्ति के माध्यम से महिलाओं की आवाज को बुलंद किया और यह साबित किया कि स्त्री केवल परिवार की जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वह आध्यात्मिक और साहित्यिक ऊंचाईयां भी छू सकती हैं|

10.  मीरा की यात्राएँ:-

मीरा बाई के जीवन में यात्राओं का विशेष महत्व रहा| परिवार और समाज के लगातार विरोध से दुखी होकर उन्होंने महलों को छोड़ने का निर्णय लिया| इसके बाद वे कृष्ण की खोज और भक्ति साधना के लिए कई धार्मिक स्थलों की ओर निकाल पड़ीं| मीरा ने वृंदावन, गोवर्धन, द्वारका और मथुरा जैसे पवित्र स्थानों की यात्रा की| इन यात्राओं में उन्होंने आध्यात्मिक मार्गदर्शन लिया| वे साधारण वेशभूषा में नंगे पाँव गांव-गांव घूमतीं और हर जगह भजन गातीं| लोग उनके भावपूर्ण भजनों से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बनते चले गए| यात्राओं के दौरान ही उन्होंने कई अमर रचनाएँ लिखीं, जिनमे विरह और मिलन दोनों की भवनाएँ व्यक्त होती हैं| मीरा की यात्राएँ केवल धार्मिक परिक्रमा नहीं थीं, बल्कि उनके लिए यह आत्मिक साधना का मार्ग था, जिसने उन्हें साधारण राजकुमारी से अमर भक्त कवयित्री बना दिया|

11. मीरा और संत परंपरा:-

भक्ति काल की संत परंपरा में मीरा बाई का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण हैं| उन्होंने संत रविदास जैसे महापुरुषों से भक्ति मार्ग की प्रेरणा ली| मीरा ने संतों की संगती में जीवन बिताया और उनकी वाणी से अपने हृदय की और भी दृढ किया| संत परंपरा का मुख्य उद्देश्य ईश्वर से सीधे जुड़ना और जाति-पात की दीवारों को तोड़ना था| मीरा ने इस परंपरा को अपनी भक्ति और रचनाओं से और भी मजबूत बनाया| वे केवल कवयित्री ही नहीं थीं, बल्कि एक सच्ची एंट थीं, जिनका जीवन तपस्या और साधना का प्रतीक था| उनके भजन केवल साहित्यिक रचनाएँ नहीं थे, बल्कि साधकों के लिए भक्ति का मार्गदर्शन थे| संत परंपरा ने उन्हें समाज की सीमओं से ऊपर उठाकर सार्वभौमिक पहचान दी| इसीलिए आज भी उन्हें "संत मीरा" कहकर आदर दिया जाता हैं|

12. मीरा की लोकप्रियता:-

मीरा बाई की लोकप्रियता उनके जीवनकाल से लेकर आज तक लगातार बढ़ती रही हैं| उनके भजन साधारण भाषा में रचे गए थे, जिससे हर वर्ग और हर उम्र का व्यक्ति उन्हें समझ और गा सकता था| यही कारण हैं कि उनके गीत गांव की चौपालों से लेकर मंदिरों और दरबारों तक गूँजते रहे| मीरा का नाम इतना प्रसिद्ध हो गया था कि जहाँ भी वे जातीं, लोग उनका स्वागत करते और उनके साथ बहजं गाते| उनकी सरलता, भक्ति और त्याग ने लोगों के हृदय में उनके लिए असीम श्रद्धा उत्पन्न की| समय के साथ-साथ उनके भजन भारतीय शास्त्रीय संगीत का भी अभिन्न हिस्सा बन गए| आज भी भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी उनके भजनों का अनुवाद किया जाता हैं और लोग उन्हें गाते हैं| उनकी लोकप्रियता का रहस्य यही हैं कि वे दिल से निकले हुए भाव थे, जिनमे दिखावा या आडंबर नहीं था|

13. मीरा की मृत्यु और अंत:-

मीरा बाई का अंत भी उनके जीवन की तरह ही रहस्यमय और भक्ति से परिपूर्ण रहा| परंपरा के अनुसार वे अपने अंतिम समय में द्वारका में रहीं| कहा जाता हैं कि एक दिन वे कृष्ण मंदिर में भजन गा रही थीं और नृत्य में लीन हो गई| उसी क्षण वे भगवान कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गई और उनकी देह इस संसार से लुप्त हो गई| यह घटना दर्शाती हैं कि मीरा जीवनभर जिस कृष्ण के प्रेम में डूबी रहीं, अंततः उसी में समा गई| कुछ एतिहासिक स्रोत बताते हैं कि उन्होंने साधारण मृत्यु पाई, लेकिन भक्तों की आस्था यह मानती हैं कि वे दिव्य रूप से कृष्ण में समाहित हो गई| चाहे उनका अंत कैसे भी हुआ हो, सच यह हैं कि उनका जीवन भक्ति, प्रेम और साहस की अमर गाथा बनकर रह गया|

14. मीरा बाई की विरासत:-

मीरा बाई ने भारतीय समाज और साहित्य को जो विरासत दी, वह अद्वितीय हैं| उनके भजन आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं| उन्होंने यह सिखाया कि भक्ति किसी जाति, वर्ग या लिंग पर निर्भर नहीं करती| उन्होंने स्त्रियों के लिए भी यह राह खोल दी कि वे अपनी स्वतंत्र सोच और जीवन जी सकती हैं| उनकी रचनाएँ केवल धार्मिक गीत नहीं थीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का भी प्रतीक थीं| आज भी जब मीरा के भजन गाए जाते हैं, तो श्रोताओं के मन में भक्ति और शांति का भाव जागृत होता हैं| उनकी विरासत भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गई हैं| संगीत, साहित्य और अध्यात्म - तीनो क्षेत्रों में मीरा की धरोहर अमर हैं|

15. आज के समय में मीरा बाई की प्रासंगिकता:-

आज के भौतिकवादी और तनावपूर्ण जीवन में मीरा बाई का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता हैं| लोग धन और वैभव की दौड़ में सुख खोजते हैं, लेकिन मीरा हमें सिखाती हैं कि असली सुख केवल आत्मा और ईश्वर से जुड़ने में हैं| उन्होंने जिस साहस से समाज और परिवार का विरोध सहते हुए भी कृष्ण भक्ति को चुना, वह आज की महिलाओं और युवाओं के लिए प्रेरणा हैं| मीरा के भजन आज भी हमें यह एहसास कराते हैं कि प्रेम और भक्ति जीवन की सबसे बड़ी पूंजी हैं| वे यह भी दिखाती हैं कि अगर इंसान अपने लक्ष्य या ईश्वर के प्रति सच्चे मन से समर्पित हो जाए, तो कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती| इसीलिए मीरा बाई आज भी हर युग और हर समाज के ले प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं|

16. मीरा का संगीत प्रेम:-

मीरा बाई केवल कवयित्री ही नहीं थीं, बल्कि संगीत की भी बड़ी साधिका थीं| उनके भजनों में संगीत का मधुर रस गहराई से मिलता हैं| वे अक्सर अपने भजनों को नृत्य और संगीत के साथ प्रस्तुत करती थीं| उनकी आवाज में भक्ति और दर्द का ऐसा संगम था कि सुनने वाला भाव-विभोर हो जाता था| कहा जाता हैं कि जब वे द्वारका या वृंदावन के मंदिरों में भजन गातीं, तो पूरा वातावरण कृष्णमय हो उठता था| संगीत उनके लिए केवल कला नहीं था, बल्कि साधना था| उन्होंने यह दिखाया कि भक्ति और संगीत का गहरा संबंध हैं| आज भी शास्त्रीय और लोक संगीत में उनके भजनों का विशेष स्थान हैं| मीरा का संगीत प्रेम इस बात का प्रतीक हैं कि ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग संगीत और भजन हो सकता हैं|

17. मीरा और लोक संस्कृति:-

मीरा बाई के भजनों ने लोक संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया| उनके गीत इतने सरल और सहज थे कि ग्रामीण परिवेश में रहने वाला साधारण व्यक्ति भी उन्हें गाकर अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकता था| उनके भजन आज भी राजस्थान, उत्तरप्रदेश और गुजरात की लोकगीत परंपरा का अभिन्न हिस्सा हैं| गांव की चौपालों, मेलों और भजन मंडलियों में मीरा के गीत पीढ़ी-दर-पीढ़ी गाए जाते रहे हैं| उनकी रचनाओं ने लोक संस्कृति को केवल समृद्ध ही नहीं किया, बल्कि उसे भक्ति और आध्यात्मिकता से भी जोड़ दिया| मीरा ने साहित्य को महलों से निकालकर आम जनता तक पहुँचाया| यही कारण हैं कि वे "लोक कवयित्री" के रूप में भी प्रसिद्ध हैं| 

18. मीरा पर आधारित साहित्य और नाटक:-

मीरा बाई का जीवन इतना प्रेरणादायक था कि उन पर अनेक साहित्यिक कृतियाँ और नाटक रचे गए| भारत के कई कवियों और लेखकों ने मीरा को अपनी रचनाओं का केद्न्र बनाया| हिंदी, गुजराती और राजस्थानी साहित्य में उनके जीवन पर कई काव्यग्रंथ लिखे गए| नाट्यकला में भी मीरा का जीवन लोकप्रिय विषय रहा| कई मंचीय नाटक और रंगमंच प्रस्तुतियां मीरा के जीवन संघर्ष और भक्ति को दर्शाती हैं| आधुनिक साहित्य में भी मीरा पर उपन्यास और शोध कार्य हुए हैं| उनकी गाथा आज भी कलाकारों और लेखकों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं| यह इस बात का प्रमाण हैं कि मीरा का प्रभाव केवल उनके समय तक सीमित नहीं था, बल्कि आने वाली पीढ़ियों तक भी पहुँचता रहा|

19. मीरा और नारी स्वतंत्रता:-

मीरा बाई का जीवन नारी स्वतंत्रता का सशक्त प्रतीक हैं| उन्होंने उस समय समाज की कठोर परंपराओं का विरोध किया, जब स्त्रियों को अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता नहीं थी| मीरा ने महलों की बंदिशें तोड़ीं और खुलेआम मंदिरों में भक्ति की| वे राजघराने की प्रतिष्ठा की परवाह किए बिना कृष्ण के नाम पर गीत गातीं और नृत्य करतीं| उनका यह साहस उस दौर की स्त्रियों के लिए प्रेरणा था| उन्होंने यह संदेश दिया कि स्त्री भी अपनी राह खुद बना सकती हैं और अपने सपनों की उस लौ की तरह हैं, जो आज भी समाज को प्रकाश देती हैं|

20. मीरा का अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव:-

मीरा बाई की भक्ति और रचनाओं का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि विदेशों तक भी पहुंचा| उनके भजनों का अंग्रेजी समेत कई भाषाओँ में अनुवाद हुआ| विदेशी दिद्वानों और संगीतज्ञों ने भी उनके गीतों का अध्ययन किया और उन्हें गाया| पश्चिमी देशों में भी मीरा की छवि एक महान संत और कवयित्री के रूप में बनी| उनके प्रेम और भक्ति के संदेश को वैश्विक स्तर पर सम्मान मिला| आधुनिक युग में कई विदेशी गायक और संगीतकार उनके भजनों को प्रस्तुत करते हैं| यह साबित करता हैं कि मीरा की भक्ति और रेप्म का संदेश सीमाओं से परे हैं और पूरी मानवता के लिए हैं|

* निष्कर्ष:-

मीरा बाई का जीवन एक ऐसा अमर अध्याय हैं, जो भक्ति, प्रेम और साहस की मिसाल बनकर सदियों से लोगों को प्रेरित कर रहा हैं| उन्होंने यह सिद्ध किया कि ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग न तो राजसी वैभव से हैं और न ही समाज की मर्यादाओं से, बल्कि सच्चे प्रेम और अटूट समर्पण से हैं| मीरा ने राजमहलों की चमक-दमक को त्यागकर भक्ति का मार्ग चुना और समाज के हर विरोध के बावजूद अपने कृष्ण प्रेम में अडिग रहीं| उनके भजन केवल गीत नहीं हैं, बल्कि आत्मा की पुकार हैं, जिनमे विरह की पीड़ा और मिलन का आनंद दोनों गहराई से महसूस होते हैं|

मीरा का जीवन स्त्रियों के लिए भी एक आदर्श हैं| उन्होंने यह दिखाया कि स्त्री केवल घर-परिवार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वह अपनी राह खुद बना सकती हैं और अपने विश्वास के लिए संघर्ष कर सकती हैं| आज के समय में जब लोग भौतिकता में उलझे हुए हैं, मीरा हमें यह सिखाती हैं कि सच्चा सुख ईश्वर, प्रेम और भक्ति से ही प्राप्त होता हैं| उनकी विरासत भारतीय संस्कृति का अमूल्य खजाना हैं, जो संगीत, साहित्य और अध्यात्म - तीनों को समृद्ध करती हैं| वास्तव में, मीरा बाई का नाम हमेशा अमर रहेगा और उनकी भक्ति की गूंज युगों-युगों तक मानवता को प्रेरणा देती रहेगी|


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