"पवित्रता का पर्व: जैन पर्व - Paryushan 2025 ( संयम और आध्यात्मिकता का संगम )"

 *  प्रस्तावना  *

भारत की आध्यात्मिक परम्पराएँ अपने गहरे मूल्यों, विविधता और जीवन-दर्शन के कारण पूरी दुनिया में विख्यात हैं| इन्ही परम्पराओं में से एक हैं जैन धर्म का पवित्र पर्व - पर्युषण ( Paryushan )| यह सिर्फ धार्मिक आयोजन भर नहीं हैं, बल्कि आत्म-शुद्धि, संयम, क्षमा और आध्यात्मिक उत्थान की एक अनूठी साधना हैं|

Paryushan 2025 इस वर्ष 20 अगस्त से 27 अगस्त तक मनाया जा रहा हैं| इस दौरान लाखों जैन अनुयायी तपस्या, उपवास, प्रार्थना और आत्मचिंतन के माध्यम से जीवन को न्य आयाम देने का संकल्प लेते हैं| यह पर्व यह सिखाता हैं कि जीवन की असली सफलता भौतिक एश्वर्य में नहीं बल्कि आत्मा की निर्मलता और करुणा में हैं|

1. पर्युषण का शाब्दिक और दार्शनिक अर्थ:-

पर्युषण शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना हैं - "परि" ( चरों ओर, पूर्णता से ) और "उष्ण" ( रहना, टिकना )| अर्थात् - आत्मा के साथ, संयम और साधना में ठहर जाना| 



दार्शनिक रूप से यह पर्व आत्मा को अशुद्धियों से मुक्त कर शुद्ध चेतना में स्थित होने का मार्ग हैं|

यह पर्व हमें याद दिलाता हैं कि शरीर नश्वर हैं, लेकिन आत्मा शाश्वत हैं|

इसीलिए पर्युषण को "आत्मा का पर्व" भी कहा जाता हैं|

2. पर्युषण का एतिहासिक और धार्मिक महत्व:-

जैन धर्म के 24 तीर्थकरों में से हर रक ने संयम, तपस्या और अहिंसा को जीवन का आधार बनाया|

पर्युषण उन्ही शिक्षाओं का व्यावहारिक रूप हैं|



यह पर्व श्वेताम्बर परम्परा में अंतिम दिन सम्वत्सरी ( Samvatsari ) के रूप में मनाया जाता हैं, जबकि दिगंबर परम्परा में दशलक्षण पर्व अधिक प्रसिद्ध हैं|

3. पर्युषण के दौरान आचरण और नियम:-

पर्युषण के दिन जैन अनुयायी विशेष आचार-विचार का पालन करते हैं|

उपवास और संयम - कई लोग पुरे 8-10 दिन का उपवास रखते हैं, जबकि कुछ लोग आंशिक उपवास या केवल जल आहार लेते हैं|

सात्त्विक आहार - आलू, प्याज, लहसुन, हरी सब्जियां और फलियाँ वर्जित मानी जाती हैं| सिर्फ अनाज और सात्त्विक भोजन लिया जाता हैं|

स्वाध्याय और प्रार्थना - आगम ( जैन धर्मग्रंथ ) का अध्ययन किया जाता हैं|

अहिंसा का पालन - छोटे से छोटे जीव को भी हानि पहुँचाने से बचा जाता हैं|

संयमित जीवनशैली - टीवी, सोशल मीडिया, मनोरंजन जैसी सांसारिक गतिविधियों से दुरी बनाकर आत्मचिंतन किया जाता हैं|

4. क्षमापना ( Kshamavani ) - पर्व का सबसे बड़ा संदेश:-

पर्युषण का सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं - क्षमा याचना|

अंतिम दिन "Micchhami Dukkadam" कहा जाता हैं, जिसका अर्थ हैं - "यदि मैंने आपसे मन, वचन या कर्म से कोई गलती की हैं तो मुझे क्षमा करें|"

यह क्षमा केवल इंसानों से नही बल्कि समस्त जीव-जंतुओं और प्रकृति से भी मांगी जाती हैं|

यह परम्परा बताती हैं कि क्षमा केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि मानवीय सम्बंधों की सबसे मजबूत डोर हैं|

5. उपवास और तपस्या - आत्मा की शुद्धि का मार्ग:-

  पर्युषण के दौरान लोग विभिन्न प्रकार के उपवास करते हैं:

एकासन - दिन में केवल एक बार भोजन|

बियासन - दिन में केवल दो बार भोजन|

अयंबिल - स्वाद और मसालों से रहित भोजन|

उपवास - पुरे दिन जल या भोजन का त्याग|

अठाई तप - लगातार 8 दिन तक उपवास|

वैज्ञानिक दृष्टि से यह उपवास शरीर को डीटाक्स करता हैं, इम्युनिटी बढ़ाता हैं और मानसिक एकाग्रता को प्रबल करता हैं|

6. जैन धर्म और पर्युषण का वैज्ञानिक महत्व:-

जैन धर्म को अक्सर केवल धर्मिक परम्परा के रूप में देखा जाता हैं, लेकिन अगर कोई गहराई से देखें तो इसकी शिक्षाएं आधुनिक विज्ञान और स्वास्थ्य विज्ञान ( Science & Health ) से गहराई से मेल खाती हैं| यही कारण हैं कि पर्युषण पर्व केवल धार्मिक साधना नहीं हैं बल्कि एक वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित जीवनशैली सुधार भी हैं|

(क). उपवास ( Fasting ) और आधुनिक विज्ञान:-  जैन धर्म में उपवास को आत्मशुद्धि का सर्वोत्तम साधन माना गया हैं| पर्युषण के दौरान जैन अनुयायी विभिन्न प्रकार के उपवास करते हैं - अयंबिल, एकासन, उपवास, अठाई तप आदि|

* विज्ञान क्या कहता हैं?

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने "Intermittent Fasting" और "Calorie Restriction" को स्वस्थ जीवनशैली का हिस्सा माना हैं|

हार्वर्ड और जापान के वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया हैं कि उपवास के दौरान शरीर की कोशिकाएं ( Cells ) "Autophagy" प्रक्रिया से गुजरती हैं| इसमें शरीर की मृत और खराब कोशिकाएं नष्ट होकर नई कोशिकाएं बनने लगती हैं|

इससे कैंसर, डायबीटीज, मोटापा, हृदय रोग और अल्जाइमर जैसी बीमारियों खतरा कम होता हैं|

उपवास शरीर को डीटाक्स ( Detoxify ) करता हैं और पाचन तंत्र को आराम देता हैं|

यानी जैन धर्म का उपवास केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी वैज्ञानिक वरदान हैं|

(ख). ध्यान ( Meditation ) और मानसिक स्वास्थ्य:-

पर्युषण के दिनों में जैन अनुयायी ध्यान और प्रार्थना करते हैं|

ध्यान करने से मन की चंचलता कम होती हैं और आत्मिक शांति मिलती हैं|

आधुनिक मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस यह मानता हैं कि Meditation से:

तनाव ( Stress ) और चिंता ( Anxiety ) कम होती हैं|

डिप्रेशन में राहत मिलती हैं|

Concentration और Memory बेहतर होती हैं|

Serotonin और Dopamine जैसे ख़ुशी देने वाले हार्मोन का स्तर बढ़ता हैं|

यही कारण हैं कि आज की व्यस्त जीवनशैली में ध्यान को Medical Therapy के रूप में अपनाया जा रहा हैं|

(ग). सत्त्विक आहार ( Satvik Diet ) और पोषण विज्ञान:-

जैन धर्म में पर्युषण के दौरान आलू, प्याज, लहसुन, गाजर जैसी जड़ वाली सब्जियां और मांसाहार पूरी तरह से वर्जित हैं| इसके पीछे केवल धार्मिक कारण ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक कारण भी हैं|

* आधुनिक पोषण विज्ञान के अनुसार:-

लहसुन और प्याज शरीर में उग्रता ( Aggression ) और उत्तेजना बढ़ते हैं, जबकि सत्त्विक आहार मन को शांत करता हैं|

जड़ वाली सब्जियां को निकालने से कई सूक्ष्म जीव मर जाते हैं, इसलिए जैन धर्म उन्हें त्यागता हैं|

सत्त्विक भोजन ( फल, अनाज, दालें, हरी सब्जियां ) में विटामिन, फाईबर और एंटीआक्सीडेंट भरपूर होते हैं, जो शरीर को बीमारियों से बचाते हैं|

हल्का और पौष्टिक भोजन पाचन को मजबूत करता हैं और मानसिक शांति देता हैं|

यही कारण हैं कि आज दुनिया भर में लोग Vegan Diet और Satvik Food की ओर आकर्षित हो रहे हैं|

(घ). अहिंसा और पर्यावरण संरक्षण:-

जैन धर्म का सबसे बड़ा सिद्धांत हैं - अहिंसा|



पर्युषण के दौरान जैन अनुयायी न केवल मांसाहार से दूर रहते हैं बल्कि छोटे-छोटे कीड़ों, पानी में रहने वाले जीवों और पेड़-पौधों को भी हानि पहुँचाने से बचते हैं|

आधुनिक पर्यावरण विज्ञान यह मानता हैं कि मांसाहार ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण हैं|

पशुपालन ( Animal Farming ) से निकलने वाली गैंसे ( Methane, CO2 ) पृथ्वी का तापमान बढ़ाती हैं|

अधिक मांस उत्पादन के लिए जंगल काटे जाते हैं, जिससे पर्यावरण असंतुलन होता हैं|

यदि पूरी दुनिया शाकाहार या जैन धर्म जैसे अहिंसक आहार की ओर बढ़े तो पर्यावरण संकट ( Climate Change ) को काफी हद तक कम किया जा सकता हैं|

यानी जैन धर्म की अहिंसा की परम्परा वास्तव में Eco-friendly Lifestyle हैं|

(ड़). क्षमापना और मनोविज्ञान:-

पर्युषण का सबसे बड़ा संदेश हैं Micchhami Dukkadam - क्षमा मांगना और देना|

* मनोवैज्ञानिक दृष्टि से:-

.   क्षमा करने से मन का बोझ कम होता हैं|

गुस्सा और नफरत कम होते हैं|

हार्वर्ड युनिवर्सिटी की एक स्टडी के अनुसार, Forgiveness Therapy से मानसिक रोगियों, में तेजी से सुधार होता हैं|

क्षमा करने से ब्लड प्रेशर, हार्ट रेत और स्ट्रेस हार्मोन ( Cortisol ) का स्तर कम होता हैं|

यानी जैन धर्म की क्षमापना केवल आध्यात्मिक साधना नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक Stress - Relief Therapy हैं|

(च). संयम और आधुनिक जीवनशैली रोग:-

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग Lifestyle, Diseases ( मोटापा, हाई BP, शुगर, डिप्रेशन ) जूझ रहे हैं|

इसका कारण हैं - ज्यादा खाना, फ़ास्ट फ़ूड, नींद की कमी, तनाव और असंयमित जीवन|

जैन धर्म का संदेश हैं - "कम खाना, संयमित रहना और नियमित दिनचर्या अपनाना|"

पर्युषण के दौरान लोफ सीमित भोजन, नियमित सोना-जागना और आत्मचिंतन का अभ्यास करते हैं|

विज्ञान भी मानता हैं कि यह जीवनशैली इन सभी बीमारियों को रोखने में मदद करती हैं|

(छ). वैज्ञानिक शोध और जैन धर्म:-

कई अंतर्राष्ट्रीय शोधों ने जैन धर्म के सिद्धांतों को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया हैं:

Oxford University ( 2019 ) की रिपोर्ट - शाकाहार से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 70% तक घट सकता हैं|

Harvard Medical School - उपवास से कोशिकाओं की मरम्मत तेज होती हैं|

American Psychological Association - क्षमा करने से मानसिक तनाव कम होता हैं|

यानी जो बाते जैन धर्म ने हजारों साल पहले सिखाई थीं, उन्हें अब आधुनिक विज्ञान भी सही मान रहा हैं|

(ज). पर्युषण और आधुनिक जीवन:-

आज की भागदौड़ और तनावपूर्ण जिंदगी में पर्युषण जैसे पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता हैं|

यह पर्व हमें "डिजिटल डीटाक्स" का अवसर देता हैं|

हमें यह सोचने पर मजबूर करता हैं कि असली ख़ुशी किसमे हैं - भौतिक उपभोग में या आंतरिक शांति में|



परिवार और समाज में क्षमा और करुणा की संस्कृति को मजबूत करता हैं|

(झ). वैश्विक स्तर पर पर्युषण:-

आज जैन समुदाय केवल भारत तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, अफ्रीका और यूरोप के कई हिस्सों में फैला हैं|

विदेशों में बसे जैन अनुयायी भी पर्युषण पर्व को बड़े उत्साह और धार्मिक भावना के साथ मनाते हैं|

मंदिरों, कम्युनिटी हॉल और ऑनलाइन प्लेटफार्म के माध्यम से सामूहिक साधना और प्रवचन आयोजित किए जाते हैं|

(ट). साहित्य, कला और संस्कृति में पर्युषण:-

जैन ग्रंथों में पर्युषण का विस्तृत वर्णन मिलता हैं|

इस पर्व से जुड़ी चित्रकला, भजन, प्रवचन और कविताएँ जैन संस्कृति की आध्यात्मिकता को और समृद्ध बनाती हैं|

"सम्वत्सरी प्रार्थना" जैन अनुयायियों के जीवन में विशेष महत्व रखती हैं|

(ठ). समाज और मानवता के लिए पर्युषण का संदेश:-

पर्युषण केवल जैनों के लिए नहीं हैं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक संदेश हैं|

*  यह हमे सिखाता हैं:

क्षमा करना सीखों|

अहिंसा का पालन करो|

भोग नहीं, त्याग में सुख खोजो|

. आत्मा की शुद्धि को सर्वोच्च महत्व दो|

* निष्कर्ष  *

Paryushan 2025 का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक हैं जितना सदियों पहले था| यह पर्व हमें याद दिलाता हैं कि इंसान का असली परिचय उसकी सम्पत्ति या पड़ से नही, बल्कि उसकी करुणा, क्षमा और आत्मसंयम से होता हैं|

जब हम क्षमा मांगते हैं और क्षमा देते हैं, तो हमारे रिश्ते मजबूत होते हैं और समाज में प्रेम और सद्भाव का वातारवरण बनता हैं|

जब हम उपवास और संयम का पालन करते हैं, त९ न केवल हमारा शरीर बल्कि हमारी आत्मा भी शुद्ध होती हैं|

और जब हम अहिंसा और अरुणा को जीवन का आधार बनाते हैं, तो पूरी दुनिया में शांति और मानवता का दीपक प्रज्वलित होता हैं|

इस प्रकार, पर्युषण केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण जीवन - दर्शन हैं|

Micchhami Dukkadam 

( यदि मेरे शब्दों या विचारों से आपको कोई कष्ट पहुंचा हो तो मै क्षमा प्रार्थी हूँ|)





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