* प्रस्तावना *
दुनिया के सामने आज सबसे बड़ा खतरा सिर्फ बढ़ते तापमान या पिघलने ग्लेशियर नहीं हैं, बल्कि पानी का संकट हैं| पानी मानव जीवन का आधार हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन ( Climate Change ) ने इस संसाधन पर गहरा असर डालना शुरू कर दिया हैं| कभी बाढ़, कभी सुखा, कभी पेयजल की कमी - ये सभी संकट आपस में जुड़े हुए हैं| विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र और कई वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्टो में चेतावनी दी गई हैं कि अगर हालात ऐसे ही रहे, तो 2050 तक दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी पानी की गंभीर कमी का सामना करेगी|
अब आईए इस पुरे विषय को गहराई से समझते हैं|
1. जलवायु परिवर्तन और वर्षों के पैटर्न में बदलाव ( Climate Change and Changing Rainfall Patterns ):-
जलवायु परिवर्तन का सबसे पहला और सीधा असर बारिश पर पड़ता हैं| पहले जहाँ मानसून और मौसम चक्र एक निश्चित समय और पैटर्न में आते थे, अब यह पूरी तरह असंतुलित हो चूका हैं| कभी जरूरत से ज्यादा बारिश, तो कभी बिल्कुल सुखा - यह असंतुलन किसानों से लेकर शहरों तक सभी को प्रभावित कर रहा हैं|
अनियमित मानसून - भारत जैसे देश में कृषि का 60% हिस्सा बारिश पर निर्भर करता हैं| लेकिन अब मानसून की अनिश्चितता ने खेती को जोखिम भरा बना दिया हैं|
अत्यधिक वर्षा - कहीं-कहीं कुछ ही दिनों में महीनों की बारिश हो जाती हैं, जिससे बाढ़ और भूस्खलन होते हैं|
कम बारिश और सुखा - दूसरी ओर, कुछ क्षेत्र लगातार बारिश से वंचित रह जाते हैं और पेयजल संकट बढ़ता हैं|
भविष्य की चिंता - वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो मानसून और भी ज्यादा अनियमित होगा, जिससे जल संकट और गंभीर हो जाएगा|
इसलिए बारिश के पैटर्न में यह अस्थिरता सीधे तौर पर पानी में भंडारण, सिचाई और पीने के पानी की उपलब्धता को प्रभावित करती हैं|
2. पिघलते ग्लेशियर और घटता मीठा पानी ( Melting Glaciers and Declining Freshwater ):-
हिमालय को "एशिया की वाटर टावर" कहा जाता हैं, क्योंकि यहाँ से निकलने वाली नदियाँ करोड़ों लोगों को पानी उपलब्ध कराती हैं| लेकिन ग्लोबल वार्मिंग ने ग्लेशियरों को तेजी से पिघलाना शुरू कर दिया हैं|
हिमायल का संकट - वैज्ञानिकों की रिपोर्ट बताती हैं कि पिछले 30 वर्षो में हिमालयी ग्लेशियरों का लगभग 40% हिस्सा पिघल चूका हैं|
नदियों पर असर - गंगा, यमुना, सिंधु और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ ग्लेशियरों से निकलती हैं| अगर ये खत्म होने लगे तो नदियों का जलस्तर घटेगा|
भविष्य का खतरा - अभी तो पिघलने से अस्थायी रूप से पानी बढ़ रहा हैं और बाढ़ आ रही हैं, लेकिन आने वाले समय में पानी की उपलब्धता बहुत कम हो जाएगी|
वैश्विक असर - आर्कटिक और अन्टार्कटिका की बर्फ के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा हैं, जिससे तटीय इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोग प्रभावित होंगे|
इसलिए ग्लेशियरों का पिघलना सिर्फ पहाड़ों तक सीमित नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के पानी की सुरक्षा पर खतरा हैं|
3. भूजल स्तर में गिरावट ( Declining Groundwater Levels ):-
जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी ने मिलकर भूजल ( Groundwater ) पर बहुत दबाव डाला हैं|
अत्यधिक दोहन - भारत दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल का उपयोग करने वाला देश हैं| खेती, उद्योग और शहरों में तेजी से भूजल खिंचा जा रहा हैं|
बारिश की कमी - पहले बारिश से भूजल recharge होता था, लेकिन अनियमित मानसून ने इस प्राकृतिक प्रक्रिया को बाधित कर दिया हैं|
शहरीकरण का दबाव - शहरों में कंक्रीट के जंगल बन जाने से पानी जमीन में नहीं उतर पता|
वैज्ञानिक चेतावनी - NITI Aayog की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 21 बड़े शहर 2030 तक पूरी तरह से पानीविहीन हो सकते हैं|
भूजल स्तर का गिरना सीधे तौर पर पेयजल संकट और कृषि उत्पादन को प्रभावित करता हैं| अगर यही हाल रहा तो आने वाली पीढियां "पानी को सोने से भी ज्यादा कीमती" मानेंगी|
4. बाढ़ और सुखा - दो चरम स्थितियाँ ( Floods and Droughts: The Extremes ):-
. क्लाईमेट चेंज ने चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ा दिया हैं|
. बाढ़ का संकट - जब कहीं अत्यधिक बारिश होती हैं तो नदी-तालाब उफान मारते हैं और लाखों लोग बेघर हो जाते हैं| फसलों और पीने के पानी की व्यवस्था नष्ट हो जाती हैं|
. सुखा का संकट - वहीँ दूसरी ओर, कई क्षेत्र सालों तक बारिश से वंचित रहते हैं| इससे खेती बर्बाद हो जाती हैं और पीने के पानी की भारी कमी हो जाती हैं|
. आर्थिक असर - हर साल भारत में बाढ़ और सूखे से अरबों डॉलर की हानि होती हैं|
. स्वास्थ्य पर असर - बाढ़ से बीमारियाँ फैलती हैं और सूखे से कुपोषण और भुखमरी बढ़ती हैं|
. यानी क्लाईमेट चेंज ने पानी के संकट को "कभी ज्यादा, कभी बिल्कुल नहीं" की स्थिति में बदल दिया हैं|
5. पानी की राजनीति और वैश्विक संघर्ष ( Water Politics and Global Conflicts ):-
. पानी अब सिर्फ प्राकृतिक संसाधन नहीं रहा, बल्कि यह देशों के बीच राजनीतिक और रणनीतिक हथियार बनता जा रहा हैं|
. अंतर्राष्ट्रीय विवाद - गंगा-ब्रह्मपुत्र, सिंधु और नील नदी जैसे कई जल स्रोतों को लेकर पड़ोसी देशों में विवाद हैं|
. देशों के भीतर संघर्ष - भारत में कावेरी, कृष्णा और सतलज-यमुना जल विवाद लंबे समय से चल रहे हैं|
. भविष्य का खतरा - विशेषज्ञ कहते हैं कि आने वाले दशकों में "Oil War" की जगह "Water War" हो सकती हैं|
. मानवाधिकार का सवाल - संयुक्त राष्ट्र मानता हैं कि पानी हर इंसान का बुनियादी अधिकार हैं, लेकिन इसकी असमान उपलब्धता सामाजिक अशांति को बढ़ा सकती हैं|
. इसलिए पानी का संकट सिर्फ पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक समस्या भी हैं|
6. समाधान और भविष्य की राह ( Solutions and The Way Forward ):-
. हालांकि संकट बड़ा हैं, लेकिन समाधान असंभव नहीं|
. वर्षा जल संचयन ( Rainwater Harvesting )- हर घर और इमारत में यह व्यवस्था ज़रूरी होनी चाहिए|
. पानी का पुनः उपयोग ( Recycling & Reuse )- उद्योगों और घरों से निकलने वाले पानी का ट्रीटमेंट करके दोबारा इस्तेमाल|
. सतत कृषि ( Sustainable Agriculture )- ड्रिप इरिगेशन और कम पानी वाली फसलें अपनानी होंगी|
. नीतियाँ और जागरूकता - सरकार को सख्त जल नीति लागु करनी होगी और लोगों को पानी बचाने के लिए जागरूक करना होगा|
. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग - पड़ोसी देशों के बीच जल समझौते और तकनीकी सहयोग बढ़ाना होगा|
. यानी यदि हम अभी कदम उठाएं, तो आने वाली पीढियों को पानी के लिए तरसना नहीं पड़ेगा|
7. शहरीकरण और औद्योगिक प्रदुषण से बढ़ता संकट ( Urbanization, Industrial Pollution & Water Crisis ):-
. क्लाईमेट चेंज के साथ-साथ शहरीकरण और औद्योगिकरण ने भी पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता पर गंभीर असर डाला हैं|
. नदियों में प्रदुषण - शहरों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला गंदा पानी सीधे नदियों और झीलों में गिरा दिया जाता हैं| गंगा और यमुना जैसी नदियाँ इसका बड़ा उदहारण हैं|
. पीने योग्य पानी की कमी - प्रदूषित जल से पीने योग्य स्वच्छ पानी ढूँढना कठिन होता जा रहा हैं| WHO की रिपोर्ट बताती हैं कि हर साल लाखों लोग दूषित पानी पीने से बीमार पड़ते हैं|
. शहरी आबादी का दबाव - ग्रामीण इलाकों से बड़े पैमाने पर लोग शहरों में आ रहे हैं| इससे पीने के पानी और सीवेज मैनेजमेंट पर अतिरिक्त दबाव पड़ता हैं|
. जलाशयों का ख़त्म होना - शहरों का फैलाव तालाब, झील और नहरों को नष्ट कर देता हैं, जिससे प्राकृतिक recharge रुक जाता हैं|
. क्लाईमेट चेंज की भूमिका - जब तापमान बढ़ता हैं तो पानी की खपत और प्रदुषण दोनों बढ़ते हैं| इस वजह से पानी की कमी और दूषित जल दोनों एक साथ संकट पैदा करते हैं|
. अगर शहरों में वाटर ट्रीटमेंट, स्मार्ट प्लानिंग और सस्टेनेबल इंडस्ट्रीज को प्राथमिकता नहीं दी गई तो आने वाले दशक में यह समस्या विस्फोटक रूप ले सकती हैं|
8. पानी और स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का असर ( Impact of Climate Change on Water & Health ):-
. पानी सिर्फ पीने या खेती का साधन नहीं, बल्कि मानव स्वास्थ्य का सीधा आधार हैं| जलवायु परिवर्तन ने पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता दोनों को प्रभावित किया हैं, जिससे स्वास्थ्य पर गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं|
. पेयजल का संकट - जब स्वच्छ पानी नहीं मिलेगा तो लोग मज़बूरी में दूषित पानी पिएंगे| इससे हैजा, डायरिया, टायफाइड और पेचिश जैसी बीमारियाँ फैलती हैं|
. बाढ़ से फैली बीमारियाँ - बाढ़ के समय गंदा पानी पीने योग्य स्रोतों में मिल जाता हैं| मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ भी पानी जमने से बढ़ती हैं|
. सूखे का असर - सूखे की स्थिति में लोगों को पर्याप्त पानी और पोषण नहीं मिल पाता, जिससे कुपोषण और डिहाइड्रेशन बढ़ता हैं|
. मानसिक स्वास्थ्य पर असर - जब लोग पानी की कमी से जूझते हैं, तो सामाजिक संघर्ष और मानसिक तनाव भी बढ़ता हैं|
. भविष्य का डर - WHO ने चेतावनी दी हैं कि आने वाले समय में पानी से जुड़ी बीमारियाँ जलवायु परिवर्तन के कारण और तेजी से फैलेंगी|
. यानी पानी का संकट केवल पर्यावरण या अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह सीधा मानव जीवन और स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा हैं|
9. जलवायु परिवर्तन और कृषि पर पानी का दबाव ( Climate Change, Agriculture & Water Stress ):-
. कृषि मानव सभ्यता की रीढ़ हैं और इसका सीधा सम्बंध पानी से हैं| जलवायु परिवर्तन ने खेती को पानी के लिहाज से असुरक्षित बना दिया हैं|
. सिंचाई की बढ़ती मांग - अनियमित मानसून के कारण किसानों को ज्यादा सिंचाई करनी पड़ती हैं|
. कम पानी वाली फसलें ज़रूरी - चावल और गन्ने जैसी फसलें ज्यादा पानी मांगती हैं| ऐसे में बाजरा, ज्वार और दालें जैसी फसलें विकल्प बन सकती हैं|
. मिट्टी की नमी कम होना - तापमान बढने से मिट्टी से नमी जल्दी उड़ जाती हैं, जिससे बार-बार सिंचाई की जरूरत होती हैं|
. भविष्य की चुतैतियाँ - यदि खेती के तरीके नहीं बदले तो 2050 तक भारत में खाद्यान्न संकट और ज्यादा गहरा हो सकता हैं|
. इसलिए कृषि क्षेत्र में पानी बचाने वाली तकनीक और नीतियाँ अपनाना बेहद ज़रूरी हैं|
10. पानी का संकट और सामाजिक असमानता ( Water Crisis & Social Inequality ):-
. पानी की कमी का असर हर किसी पर समान रूप से नहीं पड़ता| अमीर और गरीब के बीच इस संकट का असर बेहद अलग होता हैं|
. गरीबों पर दोहरा बोझ - शहरों में अमीर लोग बोतलबंद पानी खरीद सकते हैं, लेकिन गरीबों को घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता हैं|
. महिलाओं की जिम्मेदारी - ग्रामीण इलाकों में महिलाएं कई किलोमीटर दूर से पानी लाने को मजबूर होती हैं|
. ग्रामीण - शहरी असमानता - शहरों में जल आपूर्ति बेहतर होती हैं जबकि गाँवों में पेयजल संकट ज्यादा गंभीर होता हैं|
. भविष्य का खतरा - अगर पानी की असमानता और बढ़ी तो सामाजिक तनाव और हिंसा तक हो सकती हैं|
. इसलिए पानी के न्यायपूर्ण वितरण पर सरकार और समाज दोनों को ध्यान देना होगा|
** निष्कर्ष: भविष्य का जल संकट और हमारी जिम्मेदारी:-
. अब जब हमने 10 बिंदुओं में क्लाईमेट चेंज और पानी के संकट को समझा, तो साफ़ हो गया हैं कि यह समस्या कितनी जटिल और बहु-आयामी हैं|
. बारिश के असंतुलित पैटर्न से लेकर पिघलते ग्लेशियर तक,
. गिरते भूजल से लेकर शहरीकरण और प्रदुषण तक,
. कृषि पर दबाव से लेकर स्वास्थ्य और सामाजिक असमानता तक-
. हर पहलु यह बताता हैं कि पानी सिर्फ प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि मानव जीवन का आधार हैं|
. यदि हम समय रहते कदम नहीं उठाते तो:
. आने वाले दशकों में खाद्यान्न बढ़ेगा,
. स्वास्थ्य समस्याएं गहराएँगी,
. पड़ोसी देशों और समाजों में पानी को लेकर झगड़े होंगे,
. और सबसे बड़ी बात - आने वाली पीढ़ियों को पानी सोने से भी कीमती लगने लगेगा|
. लेकिन उम्मीद की किरण भी हैं| समाधान हमारे हाथ में हैं -
. वर्षा जल संचयन,
. पानी का पुनः उपयोग,
. सतत कृषि,
. जागरूकता और नीतिगत सुधार,
. तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग|
निष्कर्ष यही हैं कि अगर आज हम पानी को बचाना सीख लें, तो कल हमें पानी के लिए लड़ना नहीं पड़ेगा|
क्लाईमेट चेंज और पानी का संकट हमारे सामने हैं - अब यह हम पर निर्भर करता हैं कि हम इसे एक आपदा बनने दें या सामूहिक प्रयास से अवसर में बदलें|