* परिचय *
नालंदा विश्वविद्यालय केवल एक शैक्षणिक संस्थान नही था, बल्कि यह भारत के प्राचीन गौरव, विद्या, संस्कृति और अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा का प्रतीक था| लगभग पाँचवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच यह दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे बड़ा उन्नत विश्वविद्यालय था| जहाँ हजारो छात्र और सैकड़ो शिक्षक दुनिया भर से आते थे|
आज नालंदा का नाम केवल इतिहास के किताबों में नही बल्कि एक पुनर्जिवित शैक्षणिक केंद्र के रूप में फिर से जीवित हो चूका हैं| आईये इसके अतीत, महिमा, पतन और पुनर्निर्माण की यात्रा को विस्तार से समझते हैं|
1. नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास:-
(क). स्थापना:-
माना जाता हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त साम्राज्य के समय कुमार गुप्त प्रथम ( लगभग 415-455 ई.वी.) ने की थी|
"नालंदा" शब्द का अर्थ हैं - "अतृप्त दान" ( Giving Without Loss) जो ज्ञानदान की भावना को दर्शाता हैं|
यह विश्वविद्यालय आज के राजगिर, बिहार के पास स्थित था|
(ख). स्वर्णीम काल:-
सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय नालंदा अपनी चरम पर था|
यहाँ 10 हजार से अधिक छात्र और दो हजार से अधिक शिक्षक थे|
शिक्षा केवल धार्मिक ग्रंथो तक सीमित नही थी, बल्कि गणित, भागोलशास्त्र, चिकित्सा, तर्कशास्त्र, भाषाशास्त्र, राजनीति आदि भी पढाई जाती थी|
(ग). अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण:-
चीन, जापान, तिब्बत, कोरिया, मंगोलिया और श्रीलंका से छात्र यहाँ अध्ययन करने आते थे|
प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेनसांग ( Xuanzang ) और इत्सिंग ( Yijing) ने यहाँ अध्ययन किया और अपने लेखन में नालंदा की महिमा का वर्णन किया|
* व्हेनसांग ने लिखा-
"नालंदा में अनुशासन कड़ा था, छात्र ज्ञान के प्रति समर्पित थे और शिक्षक अत्यंत विद्वान् थे|"
2. स्थापत्य और संरचना:-
(क). वास्तु योजना:-
नालंदा 9 मंजिलों तक के विशाल बिहारों और मंदिरों का समूह था|
इसमे 10 से अधिक विशाल पुस्तकालय भवन, 300 से अधिक व्याख्यान कक्ष और बड़े-बड़े आंगन थे|
(ख). पुस्तकालय - घम्मगंज और रत्नासागर :-
नालंदा का पुस्तकालय "धम्मग्न्ज" और "रत्नसागर" कहलाता था|
इसमे लाखों पहुलिपियाँ थी, जिनमे बौद्ध दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा और गणित से जुड़े ग्रन्थ शामिल थे|
पुस्तकालय इतना विशाल था की 12वीं शताब्दी में जब इसे जलाया गया, तो आग कई महीनों तक जलती रही|
3. शिक्षा प्रणाली और जीवनशैली:-
(क). प्रवेश प्रक्रिया:-
नालंदा में प्रवेश पाना आसान नही था|
एक कठिन मौखिक परीक्षा होती थी, जिसमे 80% आवेदन असफल हो जाते थे|
(ख). शिक्षण पद्धति:-
वाद-विवाद और चर्चा पर जोर दिया जाता था|
छात्रों को शोध करने और नई खोज करने की स्वतंत्रता थी|
शिक्षा गुरु-शिष्य परम्परा पर आधारित थी, लेकिन इसमे वैश्विक दृष्टिकोण भी शामिल था|
(ग). जीवनशैली:-
छात्र और शिक्षक विश्वविद्यालय परिसर में ही रहते थे|
भोजन, आवास और शिक्षा निःशुल्क थी|
अनुशासन, ध्यान, योग और मानसिक शुद्धि पर विशेष ध्यान दिया जाता था|
4. विनाश और पतन: नालंदा विश्वविद्यालय का काला अध्याय:-
नालंदा विश्वविद्यालय का विनाश अचानक नही हुआ, बल्कि यह कई कारणों का परिणाम था-
(a). राजनीतिक अस्थिरता:-
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत में कई छोटे-छोटे राज्यों का गठन हुआ| इससे नालंदा जैसे बड़े संस्थानों को आर्थिक और सैन्य संरक्षण कम मिलने लगा|
(b). विदेशी आक्रमण:-
इस समय भारत पर बाहरी आक्रमणों की संख्या बढ़ रही थी| नालंदा जैसे विशाल पुस्तकालय और मंदिर विदेशी आक्रमणकारियों के निशाने पर थे|
(c). सांस्कृतिक टकराव:-
बौद्ध और अन्य धर्मो के बीच वैचारिक मतभेद भी एक कारण बना|
(ख). बख्तियार खिलजी का हमला ( 1193 ई.):-
नालंदा विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा विनाश 1193 ईस्वी में हुआ, जब तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने बिहार पर हमला किया|
(a). हमले का उद्देश्य:-
खिलजी ने सुना था कि नालंदा में एक "जादूगर" ( वास्तव में विद्वान वैद्द ) हैं जो बीमारियों का इलाज कर सकता हैं| जब वह उपचार कराने आया, तो उसे वहां के विद्वानों की प्रसिद्धि का अंदाजा हुआ| लेकिन इस ज्ञान और संस्कृति को वह अपने शासन के लिए खतरा मानने लगा|
(b). पुस्तकालय का दहन:-
नालंदा का मुख्य पुस्तकालय "धर्मगंज" चार भवनों में फैला हुआ था - रत्नसागर, रत्नरंजक, रत्नदधि, और रत्नरंजक| खिलजी ने इन विशाल पुस्तकालयों में आग लगा दी|
एतिहासिक स्रोत बताते हैं की यह आग लगातार कई महीनों तक जलती रही, क्योकि यहाँ लाखों पांडुलिपियाँ, हस्तलिखित ग्रन्थ और ताड़पत्र के पन्ने थे|
इनमे विज्ञान, गणित, ज्योतिष, चिकित्सा, दर्शन और बौद्ध साहित्य के अमूल्य ग्रन्थ शामिल थे|
(c). विद्वानों का नरसंहार:-
हजारों शिक्षक और विद्द्यार्थी मारे गए, कई ने भागने की कोशिश की, लेकिन अधिकांश पकड़े गये और मौत के घाट उतार दिए गए|
(ग). ज्ञान का अपरिवर्तनीय नुकसान:-
नालंदा के विनाश के साथ ही भारत ने कई महत्वपूर्ण ज्ञान-विज्ञान की विधाओं को खो दिया|
कई चिकित्सा पद्धतियाँ, खगोल विज्ञान के सूत्र, और गणितीय खोजें हमेशा के लिए लुप्त हो गई|
कई ग्रन्थ केवल तिब्बत, चीन और म्यांमार के भिक्षुओं द्वारा बचाकर ले जाए गए, जिनके कारण हमें नालंदा की थोड़ी जानकारी मिल पाई|
(घ). सांस्कृतिक और शैक्षिक प्रभाव:-
नालंदा के पतन के बाद-
भारत का शिक्षा तंत्र कई सदियों तक पिछड़ गया|
बैद्ध धर्म का प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप से तेजी से कम हुआ|
विदेशी छात्र भारत आने बंद हो गये, जिससे ज्ञान के आदान-प्रदान पर गहरा असर पड़ा|
(ड़). एतिहासिक स्रोत और प्रमाण:-
नालंदा के विनाश का उल्लेख कई इतिहासकारों ने किया हैं-
मिन्हाज-ए-सिराज की तबकात-ए-नासिरी में बख्तियार खिलजी के इस हमले का विवरण मिलता हैं|
तिब्बती भिक्षु तारानाथ और चीनी यात्री हेनसांग के विवरण से भी हमें नालंदा की भव्यता और इसके दुखद अंत का पता चलता हैं|
(च). यह सिर्फ एक इमारत का पतन नही था:-
नालंदा का पतन केवल एक विश्वविद्यालय का अंत नही था, बल्कि यह भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक धरोहर पर सबसे बड़ा आघात था|
आज भी, जब हम इस घटना को याद करते हैं, तो यह हमें बताती हैं कि-
ज्ञान और शिक्षा का संरक्षण किसी भी सभ्यता के लिए कितना आवश्यक हैं|
सांस्कृतिक धरोहर को बचाता केवल अतीत का सम्मान नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा भी हैं|
5. पुनर्निर्माण की यात्रा:-
(क). आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना:-
2006 में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः स्थापित करने की धोषणा की|
2010 में नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम पारित हुआ|
2014 में इसका नया परिसर राजगीर में उद्धाटित किया गया|
(ख). आधुनिक सुविधाएँ:-
अत्याधुनिक पुस्तकालय, रिसर्च लैब, डिजिटल क्लासरूम और अन्तर्राष्ट्रीय फैकल्टी|
वर्तमान में एशियन देशों सहित कई देशों के छात्र यहाँ पढाई कर रहे हैं|
6. नालंदा विश्वविद्यालय का वैश्विक महत्व:-
नालंदा सिर्फ भारत का ही नही, बल्कि एशिया और दुनिया के बौद्धिक इतिहास का भी गौरव हैं|
यह "ज्ञान सीमा रहित हैं" की अवधारणा का जिवंत उदहारण हैं|
आधुनिक नालंदा का उद्देश्य हैं- "प्राचीन ज्ञान और आधुनिक शोध का संगम"|
7. नालंदा से मिलने वाली सीख:-
(क). ज्ञान ही सबसे बड़ा धन हैं - भौतिक सम्पत्ति नष्ट हो सकती हैं, लेकिन ज्ञान अमर हैं|
(ख). खुला दृष्टिकोण - नालंदा ने धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को अपनाया|
(ग). अनुसंधान और नवाचार - प्राचीन समय में भी शोध और खोज को महत्व दिया गया|
* निष्कर्ष *
नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत की शिक्षा, संस्कृति और वैश्विक दृष्टिकोण का प्रतीक हैं| इसका विनाश हमें याद दिलाता हैं की ज्ञान की रक्षा करना कितना जरुरी हैं| वहीँ, इसका पुनर्जन्म यह दर्शाता हैं की सच्चा ज्ञान कभी मरता नही, हमेशा नए रूप में लौटता हैं|
* Disclaimer *
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