* * प्रस्तावना **
भारतीय मन्दिर सिर्फ आस्था का केन्द्र नही थे, बल्कि वो अपने आप में वास्तुशास्त्र, ध्वनि तकनीक और ऊर्जा विज्ञान का अद्भुद उदहारण हैं| हम मंदिर में जाकर घंटी बजाते हैं, ध्यान लगाते हैं, दीप जलाते हैं, लेकिन क्या कभी आपने सोचा हैं की इन चीजों के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण भी हो सकता हैं| आज जब विज्ञान बहुत आगे बढ़ चूका हैं, तो पुराने मंदिरों की बनावट को देख कर वैज्ञानिक भी हैरान हैं|
आईये हम इसके बारे में जानेंगे कैसे भारतीय मंदिरों में छूपा हुआ हैं विज्ञान खासकर वास्तु सिद्धांत और ध्वनि तकनीक के जरिये|
** मंदिरों की बनावट - वास्तुशास्त्र का कमाल **
1. मंदिरों की दिशा:-
प्राचीन मंदिरों को इस तरह डिजाईन किया जाता था, की मुख्य गर्भगृह ( sanctum ) हमेशा पूर्व दिशा की ओर हो| ऐसा इसलिए क्योकि सुबह की सूर्य किरणें सबसे पहले गर्भगृह पर पड़े और ऊर्जा फैलाये हैं|
. ताकि सूरज की पहली किरण मूल मूर्ति पर पड़े|
. यह न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा देता हैं, बल्कि ध्यान और ध्यान केन्द्रित करने की शक्ति भी बढ़ाता हैं|
2. मंदिर ऊर्जाकेन्द्र पर बनाये जाते थे:-
भारत में कई मंदिरों को ऐसे स्थानों पर बनाया गया हैं जहाँ धरती की ऊर्जा (magnetic energy ) ज्यादा होती हैं|
जैसे:-
. कैलाश मंदिर ( एलोरा, महाराष्ट्र ).
. कोणार्क का सूर्य मंदिर ( ओडिशा ).
. मेहंदीपुर बालाजी ( राजस्थान ).
यह सब स्थान "Earth's magnetic energy lines" पर स्थित हैं| वहां जाकर लोगों को शांति और पॉजिटिव वाईब्स मिलती हैं - यही कारण हैं की वहां ध्यान लगाना आसान लगता हैं|
** ऊर्जा का केंद्र - गर्भगृह **
मंदिरों का सबसे अंदरूनी हिस्सा होता हैं गर्भगृह| वहां अधिकतर रोशनी नही होती हैं, मगर वह हिस्सा शांत और ऊर्जा से भरा होता हैं| गर्भगृह का डिजाईन इस तरह होता हैं की वहां से उत्पन्न ऊर्जा पुरे मंदिर में फैले हैं|
* गर्भगृह अँधेरा में क्यों होता हैं?
. ताकि वहां एकाग्रता बनी रहे और बाहरी दुनिया से मन हटे|
. साथ ही वहां की वास्तु संरचना से ध्वनि प्रतिध्वनि बनती हैं, जो मंत्रो के प्रभाव को बढ़ा देती हैं|
* चुम्बकीय पत्थर या क्रिस्टल वहां रखे जाते थे:-
पुराने मंदिरों में मूर्ति के नीचे चुम्बकीय पत्थर या ऊर्जा पत्थर रखे जाते थे| इससे वहां एक खास तरह की कम्पन होती थी, जो मन और शरीर दोनों को प्रभावित करती थी|
** ध्वनि से ध्यान की शक्ति - मंदिरों की घंटी **
क्या सिर्फ देवी-देवताओ को जगाने के लिए मंदिर की घंटी?
नही, असल में घंटी बजाने से जो ध्वनि निकलती हैं, वह 7 सेकंड तक हमारे कान, दिमाग और पुरे शरीर में गूंजती हैं| यह ध्वनि होती हैं - OM या AUM की तरंग के समान|
* वैज्ञानिक कारण:-
. घंटी की ध्वनि 440 Hz से 528 Hz की फ्रिक्वेंसी पर होती हैं|
. यह फ्रिक्वेंसी मस्तिष्क की तरंगो को स्थित करती हैं|
. इससे एकाग्रता बढ़ती, और तनाव घटता हैं|
इसलिए मन्दिर की घंटी बजाना केवल परम्परा नही - बल्कि यह एक साईंटीफिक माइंड फुलनेस एक्सरसाइज हैं |
** हवा को शुद्ध करने वाला यंत्र - शंख **
* शंख फुकने से क्या होता हैं?
. शंख फुकने पर जो ध्वनि निकलती हैं, वह आस-पास की वाय में पॉजिटिव आयन बढ़ा देती हैं|
. इससे हवा शुद्ध होती हैं और कीटाणु नष्ट होते हैं|
शंख की ध्वनि से हृदय की धड़कन भी संतुलित होती हैं और शरीर में ऊर्जा का संचार होता हैं|
** ध्वनि का साधन - नाद योग **
* मंदिरों के स्तोत्र और मन्त्र सिर्फ धार्मिक नही होते हैं|
. ॐ नमः शिवाय, ॐ गं गणपतये नमः, जैसे बीज मंत्रो की ध्वनि तरंगे दिमाग में डेल्टा वेव्स पैदा करती हैं|
. ये वेव्स व्यक्ति को गहरे ध्यान में ले जाती हैं|
. ऐसा ही प्रभाव "गायत्री मंत्र" और हनुमान चालीसा का भी होता हैं|
* साइंस क्या कहता हैं?
आज neuroscience ये मान चूका हैं की chanting (जप ) करने से brain activity शांत होती हैं, और alpha state में जाता हैं - जहाँ से creativity, clarity और calmness आती हैं|
** क्या यह सिर्फ पत्थर की होती थी - मंदिरों की मूर्तियाँ **
ऐसा बिलकुल नही, प्राचीन भारत में जो मूर्तियाँ बनाई जाती थी, वो सिर्फ सौन्दर्य के लिए नही बल्कि उनमे ऊर्जा भरने की प्रक्रिया होती थी, जिसे कहते हैं| "प्राण - प्रतिष्टा" |
इसमे विशेष मंत्रो और ध्वनि तरंगो के जरिये मूर्ति में ऊर्जा संचारित की जाती थी| इसके बाद मूर्ति सिर्फ "प्ररिमा" नही रहती हैं, बल्कि एक ऊर्जावान केंद्र बन जाती हैं|
** मंदिर के गवाक्ष ( गुंबद ), खंभे और नक्काशी में भी विज्ञान **
1. ध्वनि की गूंज के लिए - गुंबद की गोलाई :-
गर्भगृह का गुंबद गोल बनाया जाता था ताकि मन्त्रो की आवाज वहा गूंजे और वातावरण में फ़ैल जाए -
जिससे मानसिक ऊर्जा बढ़े|
2. खम्भों की ध्वनि:-
कुछ पुराने मंदिरों में पत्थरों के खम्भों को जब थपथपाया जाता हैं, तो वो अलग-अलग सुरों में आवाज करते हैं, उनको Musical Pillars कहते हैं|
* उदहारण:-
. विट्ठल मंदिर, हम्पी ( कर्नाटक )
. नेल्लई अप्पर मंदिर, तमिलनाडु
** मंदिरों में दीप जलाने का वैज्ञानिक कारण **
दीपक जलाने से सिर्फ धार्मिक शांति ही नही हैं, बल्कि -
. सरसों/धी का दीपक हवा में नकारात्मक कणों को खत्म करता हैं|
. सुगन्धित धुप और कपूर का धुआं वातावरण को रोगाणु-मुक्त करता हैं|
यह सब बातें आज की आधुनिक Aromatherapy से मेल खाता हैं|
** मंदिरों की कुछ अद्भुद वैज्ञानिक विशेषताएं **
1. ब्रिहदेश्वर मंदिर ( तमिलनाडु ):-
. यहाँ के गुबंद की छाया कभी जमीन पर नही गिरती हैं|
. पुरे मंदिर में कोई गोंद या सीमेंट नही, फिर भी 1000 वर्ष से खड़ा हैं|
2. कोर्णाक सूर्य मंदिर ( ओडिशा ):-
. सूर्य की किरणों के इस मन्दिर के रथ के पहियों से होकर आती हैं|
. यह पहिए खुद ही सूर्य घड़ी ( sun dial ) की तरह काम करते हैं|
3. कैलाश मंदिर ( एलोरा ):-
. पूरा मंदिर एक ही पत्थर को काटकर ऊपर से नीचे की ओर बनाया गया हैं|
. इतनी सफाई से कटाई कैसे हुई - आज भी रहस्य बना हुआ हैं|
** निष्कर्ष **
** जब धर्म और विज्ञान साथ चलते हैं -
प्राचीन भारतीय मंदिर सिर्फ पूजा के स्थान नही थे| वह हमारे पूर्वजो की गहरी समझ, वैज्ञानिक सोच और आध्यात्मिक चेतना का अद्भुद मेल थे| हर छोटी चीज - घंटी, दीप, शंख, मूर्ति, मंत्र, दिशा - इन सबसे पीछे छिपा हैं विज्ञान और ऊर्जा का गहरा रहस्य हैं|
हमे आज भी जरूरत हैं की इन चीजों को सिर्फ परम्परा न समझे, बल्कि इनकी वैज्ञानिक महत्व को पहचाने और गर्व से आगे बढ़ाएं|
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