"सम्राट अशोक: युद्ध से धर्म की ओर यात्रा - मौर्य साम्राज्य के महान शासक की सच्ची कहानी"

 *  भूमिका  *

भारतीय इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं जो केवल अपने शासनकाल के कारण ही नही, बल्कि अपने विचारों, नीतियाँ और मानवीय दृष्टिकोण के कारण भी अमर हो जाते हैं| सम्राट अशोक का नाम उन्ही में से एक हैं| मौर्य वंश के इस महान शासक ने सत्ता, धन और विजय की लालसा में युद्ध किए, लेकिन एक युद्ध ने उनकी सोच की पूरी तरह बदल दिया| कलिंग युद्ध के बाद उन्होंने हिंसा का मार्ग छोड़कर धर्म, शांति और करुणा का रास्ता चुना|



1. जन्म और प्रारम्भिक जीवन:-

अशोक का जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र ( आज का पटना ) में हुआ था| उनके पिता सम्राट बिन्दुसार और माता का नाम शुभद्रांगी ( या धर्मा ) था| अशोक बचपन से ही बुद्धिमान, साहसी और नेतृत्व क्षमता से भरपूर थे|

* शिक्षा:- राजनीती, युद्धकला, प्रशासन, और धर्मग्रंथो का गहन अध्ययन|

* स्वभाव:- कठोर लेकिन न्यायप्रिय, तेज बुद्धि और रणनीति सोच के धनी|

2. युवावस्था और सैन्य कौशल:-

अशोक को बचपन से ही युद्धकला में निपुण बना दिया गया था|

उन्होंने मौर्य साम्राज्य की सीमओं पर कई अभियानों का नेतृत्व किया|

विद्रोही क्षेत्रों को शांत कराना, सीमओं का विस्तार करना और व्यवस्था कायम रखना उनकी खासियत थी|

इसी वजह से उन्हें "चांड अशोक" भी कहा जाने लगा, जिसका अर्थ हैं कठोर और निडर शासक|

3. सत्ता प्राप्ति:-

सम्राट बिंदुसार की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य के उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष हुआ| अशोक ने अपने भाईयों से युद्ध किया और लगभग 273ईसा पूर्व में सिंहासन प्राप्त किया|

राजगद्दी पर बैठते ही उन्होंने साम्राज्य को और मजबूत करने पर ध्यान दिया|

प्रशासनिक ढ़ाचा मजबूत किया, सेना का विस्तार किया और प्रजा के हित में कई नीतियाँ बनाई|

4. कलिंग युद्ध - जीवन का मोड़:-

अशोक के जीवन का सबसे बड़ा और निर्णायक मोड़ कलिंग युद्ध ( 261 ईसा पूर्व ) था|

*  कारण:- कलिंग ( आज का ओडिशा ) एक स्वतंत्र और समृद्ध राज्य था, जो मौर्य साम्राज्य के अधीन नही था|

* परिणाम:- इस युद्ध में 1 लाख से अधिक लोग मारे गये, 1.5 लाख कैदी बनाये गए, और असंख्य लोग घायल हुए|

* अशोक ने युद्धभूमि पर खून और लाशों का मंजर देखा, जिससे उनका हृदय बदल गया|

अशोक ने महसूस किया -

"सच्ची विजय हथियार से नही, बल्कि दिल जितने से होती हैं|"

कलिंग युद्ध ( 261 ईसा पूर्व ) में लाखों लोगो की मौत हुई| जितने के बाद भी जब अशोक रणभूमि पर गए, तो चारो ओर लाशें और घायल लोग पड़े थे| कहा जाता हैं की वे वहीँ जमीन पर बैठ गए और फुट-फुटकर रोने लगे| उस दिन उन्होंने ठान लिया की अब कभी हिंसा नही करेंगे और बौद्ध धर्म अपनाएंगे|

5. बौद्ध धर्म की ओर झुकाव:-

कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया|



उन्होंने हिंसा का मार्ग छोड़ दिया और "धम्म" के सिद्धांतो को अपनाया|

बौद्ध भिक्षुओं से मार्गदर्शन लिया और अपने जीवन का उद्देश्य शांति, करुणा और सेवा बना लिया|

उन्होंने पुरे साम्राज्य में धर्म प्रचारकों को भेजा, यहाँ तक की श्रीलंका, अफगानिस्तान और मिस्र तक|

6. धम्म नीति और शासन व्यवस्था:-

अशोक की शासन नीति को "धम्म नीति"कहा गया, जो नैतिकता, दया और भाईचारे पर आधारित थी|

प्रजा के लिए धर्म महाद्वार ( Dharmma Mahamatra ) नामक अधिकारीयों की नियुक्ति|

पशु हत्या पर रोक|

अस्पतालों, कुओं, धर्मशालाओं, और सड़कों का निर्माण|

सभी धर्मो का सम्मान और धार्मिक सहिष्णुता|

7. अशोक के शिलालेख और स्तंभ:-

अशोक ने अपने संदेश फ़ैलाने के लिए पत्थरों और स्तम्भों पर अभिलेख खुदवाए, जिन्हें "अशोक शिलालेख" कहा जाता हैं|



ये शिलालेख पुरे भारत और नेपाल में पाए जाते हैं|

इनमे नैतिकता, अहिंसा, धार्मिक सहिष्णुता और प्रजा कल्याण के संदेश अंकित हैं|

सबसे प्रसिद्द स्तम्भ सारनाथ का सिंह स्तम्भ हैं, जिसे आज भारत का राष्ट्रिय प्रतीक माना जाता हैं|

8. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योगदान:-

अशोक ने केवल भारत में ही नही, बल्कि अन्य देशों में भी शांति और बौद्ध धर्म का संदेश पहुचाया|

श्रीलंका में बौद्ध धर्म फ़ैलाने के लिए अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को भेजा|

मध्य एशिया, यूनान और मिस्र तक दूत भेजे|

उनका शासन भारतीय इतिहास का पहला उदहारण हैं जब किसी शासन ने धर्म और नैतिकता को विदेश नीति का हिस्सा बनाया|

अशोक ने अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को श्रीलंका भेजा ताकि बौद्ध धर्म का प्रचार हो| उन्होंने नेपाल, अफगानिस्तान, बर्मा और थाईलैंड तक धर्म संदेश पहुचवाया| उनकी वजह से बौद्ध धर्म एक स्थानीय धर्म से बढ़कर अंतर्राष्ट्रीय धर्म बन गया|

9. अशोक का उत्तरकालीन जीवन:-

अशोक के अंतिम वर्षो में उनका जीवन पूर्णतः धर्ममय हो गया|

उन्होंने विलासिता त्याग दी और साधारण जीवन जीने लगे|

प्रशासन को पूरी तरह प्रजा कल्याण के लिए समर्पित कर दिया|

कहा जाता हैं की अपने अंतिम समय में वे लगभग सन्यासी जैसी जिन्दगी जी रहे थे|

10. विरासत और महत्व:-

अशोक की विरासत आज भी जीवित हैं-

. भारत का राष्ट्रिय प्रतीक सारनाथ का सिंह स्तम्भ|

. राष्ट्रिय ध्वज में अशोक चक्र|

. उनकी नीतियाँ आज भी मानवता और करुणा का संदेश देती हैं|

. वे इस बात के प्रमाण हैं की सत्ता का असली उद्देश्य शांति और सेवा हैं, न की हिंसा और विजय|

11. रोचक तथ्य:-

अशोक को "देवानामप्रिय" और "प्रियदर्शी" कहा जाता था|

उन्होंने अपने शासनकाल में कभी किसी पर धार्मिक विश्वास थोपने की कोशिश नही की|

अशोक का साम्राज्य भारतीय इतिहास के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक था|

उनके समय में भारत का प्रशासनिक ढ़ाचा बेहद संगठित था|

12. आज के समय में अशोक से सीख:-

सत्ता और ताकत का उपयोग जनता के भले के लिए होना चाहिए|

हिंसा कभी स्थायी समाधान नही होती, संवाद और सहानुभूति जरुरी हैं|

धर्म का असली अर्थ हैं मानवता, नैतिकता और करुणा|

13. जनता के लिए 'अशोक के शिलालेख' बनवाया:-

अशोक ने पुरे भारत और पड़ोसी देशों में पत्थरों और स्तम्भों पर अपने संदेश खुदवाए| इसमें उन्होंने धर्म, सत्य, दया और करुणा का उपदेश दिया| ये शिलालेख आज भी भारत, नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में देखे जा सकते हैं| उनका मकसद था कि नागरिक तक उनका संदेश पहुंचे, चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या नही|

14. साधु को सजा देकर खुद को दोषी मानना:-

एक बार अशोक के दरबार में गलतफहमी के कारण एक निर्दोष बौद्ध भिक्षु को कठोर सजा दी गई| बाद में जब उन्हें सच्चाई का पता चला, तो उन्होंने न केवल उस भिक्षु से माफ़ी मांगी, बल्कि अपने मंत्री को भी सख्त चेतावनी दी की आगे से बिना पूरी जाँच के किसी को सजा न दी जाए|

*  निष्कर्ष  *

सम्राट अशोक का जीवन इस बात का प्रमाण हैं की एक कठोर और युद्धप्रिय शासक भी, सही अनुभव और आत्मचिंतन के बाद, पूरी तरह बदल सकता हैं| कलिंग युद्ध ने उनके जीवन को पलट दिया और वे इतिहास के सबसे महान मानवीय शासकों में गिने जाने लगे| उनकी नीतियाँ और विचार न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा स्रोत हैं|

*  Disclaimer  *

 यह ब्लॉग पढ़ने के लिए धन्यवाद, कृपया इसे शेयर जरुर करें और हमे बताएं की अगला ब्लॉग किस टॉपिक पर लिखें|



एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने