* प्रस्तावना *
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सुभाष चंद्र बोस का नाम सुनते ही हृदय गर्व से भर जाता हैं| उन्हें "नेताजी" के नाम से पुकारा जाता हैं और वे उन चंद महान स्वतंत्रता सेनानियों में गिने जाते हैं उन्होंने अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी| उनका व्यक्तित्व अद्भुत, साहसी और देशभक्ति से परिपूर्ण था| नेताजी का विश्वास था कि केवल अहिंसा से आजादी संभव नहीं, बल्कि इसके लिए क्रांति और बलिदान की आवश्यकता हैं| यही कारण हैं कि उन्होंने "आजाद हिंद फ़ौज" का गठन किया और नारा दिया - "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा|"
नेताजी का जीवन संघर्ष, साहस और बलिदान का प्रतीक हैं| उनका जन्म साधारण बंगाली परिवार में हुआ लेकिन उन्होंने देश को असाधारण प्रेरणा दी| वे बचपन से ही तेजस्वी, परिश्रमी और राष्ट्रप्रेमी थे| आईसीएस की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर देश की सेवा करने का साहस दिखाना यह बताता हैं कि उनके लिए व्यक्तिगत लाभ की कोई अहमियत नहीं थी|
सुभाष चंद्र बोस ने युवाओं को जगाने, समाज को एकजुट करने और विदेशी ताकतों से लड़ने के लिए हर कदम पर साहसिक निर्णय लिया| उनका योगदान आज भी भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं|
इस ब्लॉग में हम विस्तार से नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के जीवन, कार्य और योगदान को इन प्रमुख बिंदुओं से समझते हैं|
1. सुभाष चंद्र बोस का प्रारंभिक जीवन:-
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा ( अब ओडिशा ) के कटक नगर में हुआ| उनके पिता जानकीनाथ बोस एक प्रसिद्ध वकील थे और माता प्रभावती बोस धार्मिक और संस्कारी महिला थीं| घर का वातावरण अनुशासन और शिक्षा से भरा हुआ था| सुभाष बचपन से ही मेधावी, गंभीर और गहरी सोच वाले बालक थे| वे पढ़ाई में तेज थे और साथ ही शारीरिक गतिविधियों में भी आगे रहते थे| उनके जीवन पर परिवार और बंगाल की राष्ट्रवादी पृष्ठभूमि का गहरा प्रभाव पड़ा|
सुभाष ने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज और बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़ाई की| वे बचपन से ही देश के प्रति प्रेम और स्वतंत्रता की भावना रखते थे| ब्रिटिश शासन के अन्याय और अत्याचार को देखकर उनके अंदर विद्रोह की भावना जागृत हुई| उनकी सोच थी कि भारत को स्वतंत्र कराने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए| इसीलिए उन्होंने कम उम्र से ही देश की सेवा को अपना लक्ष्य बना लिया|
उनके बाल्यकाल से ही झलकने लगा था कि वे कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि भविष्य में भारत के लिए कुछ असाधारण करने वाले हैं| यही कारण हैं कि वे आज भी युवाओं के आदर्श माने जाते हैं|
2. शिक्षा और विदेश यात्रा:-
सुभाष चंद्र बोस ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक में पाई और बाद में कलकत्ता ( अब कोलकाता ) के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला किया| वे पढ़ाई में हमेशा अव्वल आते थे| लेकिन कॉलेज जीवन में ही उनके भीतर अंग्रेजी शासन के प्रति विद्रोह की भावना उभरने लगी| एक अंग्रेज प्राध्यापक द्वारा भारतीय छात्रों का अपमान करने पर उन्होंने विरोध किया, जिसके कारण उन्हें कॉलेज से निकाल भी दिया गया|
इसके बाद उन्होंने स्काटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए| वहां उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में डिग्री प्राप्त की और भारतीय सिविल सेवा ( ICS ) की परीक्षा पास की, जिसमें वे चौथे स्थान पर आए| यह परीक्षा ब्रिटिश शासन में बहुत प्रतिष्ठित मानी जाती थी|
लेकिन नेताजी ने उस नौकरी को ठुकरा दिया| उनका मानना था कि अंग्रेजों की गुलामी करने से बेहतर हैं कि अपनी मातृभूमि की सेवा की जाए| इस फैसले ने उनकी देशभक्ति और त्याग की भावना को और स्पष्ट कर दिया| इंग्लैंड में रहते हुए भी वे भारतीय छात्रों और नेताओं से जुड़े रहे और राष्ट्रवाद की भावना को और गहराई से समझा|
3. भारतीय राजनीति में प्रवेश:-
भारत लौटने के बाद सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए| वे महात्मा गाँधी और चितरंजन दास जैसे नेताओं से प्रभावित हुए| खासकर चितरंजन दास उनके राजनीतिक गुरु बने| बोस का मानना था कि केवल सुधारों और विनम्रता से अंग्रेज भारत को स्वतंत्र नहीं करेंगे, इसके लिए कठोर कदम उठाने होंगे|
कांग्रेस में शामिल होकर उन्होंने युवाओं को जागरूक करने का कार्य शुरू किया| वे संगठनात्मक क्षमता में अद्वितीय थे| जल्द ही वे कांग्रेस के अग्रणी नेता बन गए| उन्होंने वामपंथी विचारधारा और क्रांतिकारी सोच को अपनाया|
1930 के दशक में वे बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष बने और राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी पहचान एक तेजतर्रार, साहसी और देशभक्त नेता के रूप में होने लगी| उन्होंने देशभर में यात्राएँ की और लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया|
सुभाष चंद्र बोस की राजनीति का केंद्र बिंदु हमेशा स्वतंत्रता रहा| उनका मानना था कि स्वतंत्रता किसी भी कीमत पर मिलनी चाहिए| यही सोच उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाती थी|
4. कांग्रेस अध्यक्ष और गाँधी से मतभेद:-
सुभाष चंद्र बोस को 1938 में हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया| उस समय उनका प्रभाव युवाओं और आम जनता में बहुत अधिक था| वे तेज सोच, क्रांतिकारी दृष्टिकोण और ठोस योजनाओं के लिए जाने जाते थे| उन्होंने अपने कार्यकाल में देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक नीतियों के लिए योजनाएं बनाई|
1939 में त्रिपुरी अधिवेशन में उन्हें फिर से अध्यक्ष चुना गया| लेकिन इस बार उनका महात्मा गाँधी और अन्य नेताओं से गंभीर मतभेद हुआ| गाँधी जी अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग पर विश्वास रखते थे, जबकि नेताजी मानते थे कि अंग्रेजों से सीधी टक्कर लिए बिना स्वतंत्रता संभव नहीं|
इन मतभेदों के कारण उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और "फॉरवर्ड ब्लॉक" नामक संगठन बनाया| यह संगठन उन युवाओं और कार्यकर्ताओं का समूह था जो क्रांतिकारी विचारधारा में विश्वास रखते थे|
यह घटना साबित करती हैं कि नेताजी अपने विचारों पड़ अडिग रहते थे और किसी भी दबाव या समझौते के लिए तैयार नहीं थे| उनका लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ पूर्ण स्वतंत्रता था|
5. ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तारी और नजरबंदी:-
सुभाष चंद्र बोस की क्रांतिकारी सोच और उनके बढ़ते प्रभाव से ब्रिटिश सरकार हमेशा डरती थी| वे जानते थे कि यदि यह युवा नेता जनता को पूरी तरह से अपने साथ जोड़ लेगा तो अंग्रेजों के लिए भारत पर शासन करना असंभव हो जाएगा| इसी कारण बोस को कई बार गिरफ्तार किया गया| उन्हें जेल में रखा गया, कभी नजरबंदी में रखा गया ताकि उनकी गतिविधियाँ सीमित हो जाएँ|
लेकिन नेताजी कभी हार मानने वाले नहीं थे| जेल में रहते हुए भी वे अपने लेखन और विचारों से युवाओं को प्रेरित करते रहे| उनके भाषण और लेखन ब्रिटिश शासन के खिलाफ युवाओं के मन में क्रांति की ज्वाला भरते थे| उन्होंने कैद के दौरान भी कई किताबें और लेख लिखे, जिनसे लोगों को स्वतंत्रता की सच्ची परिभाषा समझने का अवसर मिला|
ब्रिटिश हुकुमत की सख्ती भी उनके हौसले को डिगा नहीं सकी| हर बार रिहा होकर वे और भी मजबूत होकर सामने आते थे| यही कारण था कि नेताजी का नाम अंग्रेजी शासन के लिए हमेशा सिरदर्द बना रहा| वे जानते थे कि बोस को रोका नहीं जा सकता, क्योंकि उनके अंदर आजादी का जूनून खून की तरह दौड़ता था|
6. कलकत्ता से पलायन और महान रहस्य:-
1941 में ब्रिटिश सरकार ने सुभाष चंद्र बोस को नजरबंद कर दिया था| लेकिन नेताजी ने अद्भुत साहस और चतुराई से वहां से भाग निकलने की योजना बनाई| 16 जनवरी 1941 को वे भेष बदलकर अपने घर से निकले और देश छोड़कर विदेश की ओर निकल पड़े| यह घटना आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की सबसे रोमांचक घटनाओं में गिनी जाती हैं|
बोस का यह पलायन केवल भागना नहीं था, बल्कि एक बड़े मिशन की शुरुआत थी| वे जानते थे कि भारत को स्वतंत्र कराने के लिए बाहरी देशों की मदद भी आवश्यक हैं| इसी उद्देश्य से वे जर्मनी और बाद में जापान पहुंचे| वहां जाकर उन्होंने आजादी की लड़ाई को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाया और सहयोगियों की तलाश की|
उनका यह साहसिक कदम अंग्रेजों को हिला देने वाला था| ब्रिटिश सरकार को विश्वास ही नहीं हुआ कि नजरबंदी में रखा गया व्यक्ति इतनी आसानी से भाग सकता हैं| नेताजी के इस पलायन ने उन्हें एक रहस्यमयी और वीर नेता की छवि दी| यही कारण हैं कि आज भी उनका जीवन रहस्य और प्रेरणा से भरा माना जाता हैं|
7. आजाद हिंद फ़ौज का गठन:-
सुभाष चंद्र बोस का सबसे बड़ा योगदान "आजाद हिंद फ़ौज" ( INA ) का गठन माना जाता हैं| उन्होंने जापान और जर्मनी से सहयोग लेकर भारतीय युद्धबंदियों और प्रवासी भारतीयों को संगठित किया और एक सेना तैयार की| इस फ़ौज का मुख्य उद्देश्य था - अंग्रेजों से सीधे युद्ध कर भारत को आजाद कराना|
आजाद हिंद फ़ौज का नारा था - "जय हिंद" और नेताजी ने युवाओं को संबोधित करते हुए एतिहासिक नारा दिया - "तं मुझे खून दो, मै तुम्हें आजादी दूँगा|" यह नारा आज भी हर भारतीय के दिल में जोश और गर्व भर देता हैं|
इस फ़ौज में हजारों भारतीय शामिल हुए, जिनमें पुरुषों के साथ महिलाएं भी थीं| महिलाओं ने कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी| नेताजी का मानना था कि भारत की स्वतंत्रता केवल भाषणों और सत्याग्रह से नहीं मिलेगी, बल्कि इसके लिए हथियार उठाने होंगे|
आजाद हिंद फ़ौज ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया और भारतियों में आत्मसम्मान और आजादी की नई चेतना जगाई|
8. नेताजी का नारा और जनता पर प्रभाव:-
सुभाष चंद्र बोस के नारों और भाषणों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में नई ऊर्जा भर दी| जब उन्होंने कहा - "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा," तो पूरा देश उनके साथ खड़ा हो गया| यह नारा केवल शब्द नहीं था, बल्कि यह एक क्रांतिकारी पुकार थी, जिसमे लाखों भारतीयों के दिलों में आजादी का ज्वालामुखी जगा दिया|
उनके संबोधन में जोश और ईमानदारी होती थी| जनता को लगता था कि यह नेता केवल बातें नहीं करता, बल्कि अपनी जान दाँव पर लगाकर भी देश को आजाद कराने के लिए तैयार हैं| यही कारण हैं कि लोग उन्हें "नेताजी" कहकर पुकारने लगे|
उनके नेतृत्व में आजाद हिंद फ़ौज ने "दिल्ली चलो" का नारा बुलंद किया| यह नारा हर भारतीय के लिए प्रेरणा बन गया| महिलाएं, किसान, मजदूर और युवा - सभी नेताजी की पुकार कर तैयार थे|
सुभाष चंद्र बोस ने सिद्ध कर दिया कि यदि एक नेता में सच्चा जोश और ईमानदारी हो तो वह पूरी जनता के दिलों में आग जला सकता हैं| उनका हर शब्द भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया|
9. विदेशों में समर्थन की तलाश:-
सुभाष चंद्र बोस जानते थे कि भारत अकेले अंग्रेजों का सामना करने में कठिनाई महसूस करेगा| इसलिए उन्होंने विदेशों से सहयोग प्राप्त करने का प्रयास किया| वे जर्मनी, इटली और जापान जैसे देशों से मिले और भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई को विश्व मंच पर उठाया|
जर्मनी में रहते हुए य्न्होने "फ्री इंडिया सेंटर" और "आजाद हिंद रेडियो" की स्थापना की| यहाँ से वे भारतीयों को संबोधित करते और अंग्रेजों के अत्याचारों की सच्चाई दुनिया तक पहुंचाते| उनकी आवाज रेडियो पर सुनकर भारत में लोग जोश से भर जाते थे|
जापान से उन्हें सबसे बड़ा सहयोग मिला| जापानी सरकार ने उनकी आजाद हिंद फ़ौज को सैन्य और आर्थिक सहायता दी| जापान ने बोस को दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों से मिलवाया, जहाँ से उन्हें फ़ौज के लिए सैनिक और संसाधन मिले|
नेताजी का यह प्रयास दिखाता हैं कि वे केवल भारत की सीमा में रहकर नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी स्वतंत्रता की रणनीति बना रहे थे| उन्होंने साबित किया कि आजादी के लिए कूटनीति और विदेशों से समर्थन भी उतना ही ज़रूरी हैं जितना देश के भीतर संघर्ष|
10. आजाद हिंद सरकार:-
1943 में सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापूर में "आजाद हिंद सरकार" ( Provisional Government of Free India ) की स्थापना की| यह सरकार प्रतीक थी उस भारत की, जो अंग्रेजों की बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्र होने जा रहा था| बोस को इस सरकार का प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और युद्ध मंत्री घोषित किया गया|
इस सरकार को जापान, जर्मनी, इटली, बर्मा और कई अन्य देशों ने मान्यता भी दी| यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि इससे दुनिया को यह संदेश गया कि भारतीय अपने बल पर एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए तैयार हैं|
आजाद हिंद सरकार ने अपने झंडे, मुद्रा और डाक टिकट तक जारी किए| इस सरकार का मुख्यालय सिंगापूर और फिर रंगून ( अब यांगून, म्यांमार ) में रहा|
हालांकि यह सरकार पूरी तरह से कार्यान्वित नहीं हो पाई, लेकिन इसने भारतीयों के मन में यह विश्वास जगा दिया कि स्वतंत्र भारत का सपना अब दूर नहीं हैं| नेताजी की यह पहल आजादी की लड़ाई में एक एतिहासिक मील का पत्थर बनी|
11. भारत की ओर अग्रसर आजाद हिंद फ़ौज:-
नेताजी और उनकी आजाद हिंद फ़ौज का लक्ष्य था - दिल्ली पहुँचकर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ देना| जापानी सेना की मदद से आजाद हिंद फ़ौज ने बर्मा ( म्यांमार ) और इम्फाल ( भारत ) की ओर बढ़ना शुरू किया| इस यात्रा को "दिल्ली चलो अभियान" कहा गया|
फ़ौज ने अंग्रेजों के खिलाफ कई मोर्चों पर बहादुरी से लड़ाई लड़ी| लेकिन संसाधनों की कमी, मौसम की कठिनाईयां और जापान की हार ने फ़ौज को कमजोर कर दिया| बावजूद इसके, सैनिकों का मनोबल टूटने नहीं दिया गया|
नेताजी हमेशा अपने सैनिकों के साथ रहते, उन्हें प्रोत्साहित करते और कहते - "हमारा लक्ष्य दिल्ली हैं|" उनकी मौजूदगी से सैनिकों के भीतर जोश भर जाता था|
हालांकि आजाद हिंद फ़ौज दिल्ली तक नहीं पहुंच पाई, लेकिन उसने पुरे देश में स्वतंत्रता की लहर पैदा कर दी| लोगों को विश्वास हो गया कि भारत अब अधिक समय तक गुलाम नहीं रह सकता| यह अभियान आजादी की ज्वाला को और प्रज्वलित करने वाला साबित हुआ|
12. नेताजी का बलिदान और रहस्यमयी अंत:-
सुभाष चंद्र बोस का जीवन जितना प्रेरणादायी रहा, उतना ही रहस्यमय भी रहा| 18 अगस्त 1945 को उनकी मृत्यु की खबर आई| कहा गया कि उनका विमान ताईवान ( तब फार्मोसा ) में दुर्घटनाग्रस्त हो गया और वे शहीद हो गए| लेकिन यह खबर पूरी तरह से प्रमाणित नहीं हो पाई|
भारत में लाखों लोग इस खबर को मानने को तैयार नहीं थे| कई लोगों का विश्वास था कि नेताजी जीवित हैं और किसी गुप्त स्थान पर रहकर आजादी की लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं| उनके अंत को लेकर कई जाँच समितियां बनीं, लेकिन रहस्य आज भी पूरी तरह से नहीं सुलझा|
नेताजी का यह रहस्यमय अंत उन्हें और भी महान बना देता हैं| उनकी कहानी सिर्फ जीवन और संघर्ष की नहीं, बल्कि रहस्य और बलिदान की भी हैं| भारतवासी उन्हें हमेशा अमर शहीद मानते हैं, चाहे उनका नत कैसे भी हुआ हो|
13. नेताजी का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:-
भारत की आजादी में सुभाष चंद्र बोस का योगदान असाधारण हैं| उन्होंने भारत को यह विश्वास दिलाया कि अंग्रेजों से सीधी टक्कर ली जा सकती हैं| उन्होंने न केवल भारत के भीतर लोगों को जगाया, बल्कि विदेशों में भी भारत की आजादी की आवाज उठाई|
आजाद हिंद फ़ौज और आजाद हिंद सरकार उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व का प्रमाण हैं| भले ही उनकी फ़ौज सीधे अंग्रेजों को भारत से बाहर नहीं निकाल पाई, लेकिन इसने भारतीयों के दिलों में आत्मसम्मान और आजादी की ललक को और बढ़ा दिया|
इतिहासकार मानते हैं कि नेताजी की गतिविधियों ने ब्रिटिश सरकार को यह एहसास करा दिया कि अब भारत पर राज करना संभव नहीं| भारतीय सैनिकों और जनता के बीच बढ़ते असंतोष ने अंग्रेजों को जल्द से जल्द भारत छोड़ने पर मजबूर किया|
इस तरह नेताजी का योगदान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भारत की स्वतंत्रता में निर्णायक साबित हुआ|
14. युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत:-
सुभाष चंद्र बोस का जीवन आज भी युवाओं के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा हैं| उन्होंने दिखाया कि सच्चा देशप्रेम कैसा होता हैं और त्याग किसे कहते हैं| उन्होंने आरामदायक नौकरी और सुख-सुविधाओं को छोड़कर मातृभूमि के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया|
उनका साहस, दूरदृष्टि और संघर्ष हमें यह सिखाता हैं कि यदि लक्ष्य महान हो, तो कठिनाईयां और बाधाएं कुछ भी मायने नहीं रखतीं| आज भी जब कोई युवा "जय हिंद" या "दिल्ली चलो" जैसे नारे सुनता हैं, तो उसके भीतर जोश भर जाता हैं|
नेताजी ने हमें यह संदेश दिया कि स्वतंत्रता, सम्मान और स्वाभिमान से बड़ा कुछ नहीं| हर पीढ़ी को उनसे यह सीख लेनी चाहिए कि राष्ट्रहित सर्वोपरि हैं| उनका जीवन एक ऐसी ज्योति हैं, जो हर भारतीय युवा को अपने कर्तव्यों की याद दिलाती हैं|
15. आजाद हिंद रेडियो की स्थापना:-
सुभाष चंद्र बोस ने जनता तक अपने विचार और संदेश पहुँचाने के लिए "आजाद हिंद रेडियो" की स्थापना की| इसका मुख्यालय जर्मनी और बाद में सिंगापूर में रहा| इस रेडियो के माध्यम से नेताजी भारतीयों को संबोधित करते और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित करते थे|
रेडियो उस समय सुचना का सबसे प्रभावी साधन था| जब भारतीय लोग नेताजी की आवाज सुनते थे, तो उनके भीतर क्रांति की आग और भी तेज ही जाती थी| अंग्रेजों के प्रचार के बीच नेताजी का यह रेडियो स्वतंत्रता की सच्ची आवाज था|
उन्होंने यहाँ से अंग्रेजों के अत्याचार, भारत की वास्तविक स्थिति और स्वतंत्रता संग्राम की योजनाओं के बारे में बताया| उनके भाषणों से न केवल भारत के लोग बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी प्रभावित हुए|
आजाद हिंद रेडियो उस दौर का "देशभक्ति का हथियार" था| इसने सिद्ध कर दिया कि केवल तलवार से ही नहीं, बल्कि शब्दों और विचारों से भी युद्ध जीता जा सकता हैं|
* निष्कर्ष:-
सुभाष चंद्र बोस केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा था| उनका जीवन साहस, त्याग और देशभक्ति का अद्वितीय उदहारण हैं| उन्होंने दिखा दिया कि सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता केवल वही प्राप्त कर सकता हैं, जो इसके लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हो|
उनका बचपन से ही तेजस्वी और राष्ट्रप्रेमी स्वभाव उन्हें भीड़ से अलग बनाता था| आईसीएस जैसी प्रतिष्ठित नौकरी को ठुकराना यह दर्शाता हैं कि वे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से ऊपर उठ चुके थे| कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने जनता को जागृत किया, और जब विचारधाराओं में मतभेद हुए, तब भी उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया|
आजाद हिंद फ़ौज और महिलाओं का गठन उनकी दूरदृष्टि और नेतृत्व क्षमता को दर्शाता हैं| उन्होंने महिलाओं को भी स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण स्थान दिया| उनके नारों ने पुरे देश में क्रांति की ज्वाला जगा दी|
हालांकि उनका "दिल्ली चलो" अभियान पूरी तरह सफल नहीं हो पाया, लेकिन इसने अंग्रेजों की जड़ों को हिला दिया| ब्रिटिश सरकार ने महसूस किया कि भारत अब गुलामी में अधिक समय तक नहीं रह सकता|
उनकी रहस्यमयी मृत्यु आज भी हमारे दिलों में सवाल छोड़ती हैं, लेकिन एक बात स्पष्ट हैं - नेताजी अमर हैं| उनका जीवन और उनका संदेश भारतीयों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे|
आज जब हम स्वतंत भारत में साँस लेते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि यह स्वतंत्रता नेताजी जैसे वीरों के बलिदान का परिणाम हैं| सुभाष चंद्र बोस का जीवन हमें सिखाता हैं - "राष्ट्र सर्वोपरि हैं और उसके लिए संघर्ष ही सच्ची पूजा हैं|"