"महाभारत की पूरी कहानी: धर्म बनाम अधर्म का सबसे बड़ा युद्ध"

 *  प्रस्तावना  *

महाभारत केवल एक धार्मिक ग्रन्थ या युद्ध की कहानी भर नहीं हैं, बल्कि यह भारत की आत्मा और संस्कृति का आईना हैं| इसे "पंचम वेद" भी कहा जाता हैं, क्योंकि इसमें जीवन के हर पहलु का अद्भुत चित्रण हैं - राजनीति, धर्म, युद्ध, नीति, ज्ञान, विज्ञान और आध्यात्मिकता| महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित यह महाकाव्य विश्व का सबसे बड़ा ग्रन्थ माना जाता हैं, जिसमे लगभग एक लाख श्लोक हैं|



महाभारत की कथा केवल कुरुक्षेत्र के युद्ध तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में धर्म क्या हैं, अधर्म क्या हैं, और कठिन परिस्थितियों में हमें किस मार्ग का चयन करना चाहिए| इसमे श्रीकृष्ण का "श्रीमद्भागवत" का उपदेश विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, जो आज भी पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं|

यह महाकाव्य केवल प्राचीन इतिहास नहीं बल्कि मानव जीवन का मार्गदर्शन हैं| इसमें ऐसे तथ्य, कहानियां और जीवन सूत्र छिपे हैं जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने सहस्त्रों वर्ष पहले थे| इस लेख में हम महाभारत को प्रमुख बिंदुओं में विस्तार से समझेंगे और देखेंगे कि यह महाकाव्य क्यों भारतीय संस्कृति की धरोहर हैं|

1. महाभारत की उत्पत्ति और महत्व:-

महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी| इसे मूल रूप से "जयसंहिता" कहा गया, जिसमें केवल 8,800 श्लोक थे| समय के साथ यह "भारत" और फिर "महाभारत" के रूप में प्रसिद्ध हुआ, जिसमें लगभग एक लाख श्लोक समाहित हो गए| इसकी गिनती विश्व के सबसे विशाल महाकाव्यों में होती हैं|

महाभारत केवल पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध की गाथा नहीं हैं, बल्कि यह धर्म, नीति, राजनीति, दर्शन और जीवन-मूल्यों का संग्रह हैं| इसे "इतिहास" भी कहा गया क्योंकि यह केवल कथा नहीं, बल्कि घटनाओं और उनके कारणों का जीवंत विवरण हैं|

इसके 18 पर्व ( खंड ) हैं, जिनमें आदिपर्व से लेकर स्वर्गारोहणपर्व तक सबकुछ वर्णित हैं| यह ग्रंथ मनुष्य को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्गदर्शन देता हैं - चाहे वह परिवार हो, समाज हो या राज्य| यही कारण हैं कि केवल हिन्दू धर्मग्रंथ ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए ज्ञानकोष माना जाता हैं|

2. हस्तिनापुर और कुरुवंश की पृष्ठभूमि:-

महाभारत की कथा का केंद्र हस्तिनापुर था, जो कुरुवंश की राजधानी थी| राजा शांतनु, भीष्म पितामह, धृतराष्ट्र, पांडू और विदुर जैसे प्रमुख पात्र इसी वंश से थे| हस्तिनापुर का इतिहास ही महाभारत की पूरी गाथा का आधार हैं|

पांडव और कौरव इसी वंश के उत्तराधिकारी थे| धृतराष्ट्र अंधे गोने के कारण राज्य नहीं चला पाए, और पांडु के समय में भी कई कठिनाईयां आई| भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन कर सिंहासन और राज्य को सुरक्षित रखा|

कुरुवंश की यही जटिल परिस्थितियाँ आगे चलकर युद्ध का कारण बनीं| हस्तिनापुर केवल सत्ता का केंद्र नहीं था, बल्कि यह धर्म और अधर्म की लड़ाई का भी प्रतीक था| महाभारत हमें यह सिखाता हैं कि जब सत्ता लोभ और अन्याय पर आधारित होती हैं तो उसका अंत विनाशकारी ही होती हैं|

3. पांडव और कौरव: दो दृष्टिकोण:-

महाभारत के दो मुख्य पक्ष हैं - पांडव और कौरव| पांडव पाँच भाई थे - युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव| ये धर्म, न्याय और सत्य के पक्षधर माने जाते थे| दूसरी ओर, कौरव सौ भाई थे, जिनका नेतृत्व दुर्योधन करता था| कौरव महत्वाकांक्षा, ईर्ष्या और अधर्म के प्रतीक बने|

हालांकि, दोनों ही शाखाएं एक ही परिवार से थीं, लेकिन उनकी सोच और संस्कारों में बहुत अंतर था| जहाँ पांडव कठिनाईयों में भी धर्म का पालन करते रहे, वहीँ कौरव सत्ता और एश्वर्य के लालच में अन्याय के रस्ते पर चले गए|

यह तुलना हमें सिखाती हैं कि एक ही घर-परिवार से उत्पन्न लोग भी अपनी सोच और कर्मो से अलग पहचान बना सकते हैं| महाभारत इस संघर्ष को केवल परिवार की लड़ाई के रूप में नहीं, बल्कि सत्य और असत्य, धर्म और अधर्म की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत करता हैं|

4. द्रौपदी का महत्व और चीरहरण प्रसंग:-

महाभारत की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक हैं द्रौपदी का चीरहरण| द्रौपदी, पांचो पांडवों की पत्नी थीं और उन्हें अद्वितीय नारी शक्ति का प्रतीक माना जाता हैं| जब पांडव जुए में सब कुछ हार गए, तो दुर्योधन ने द्रौपदी को सभा में अपमानित करने का प्रयास किया|

उस समय द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को पुकारा और उनकी कृपा से उनका चीर ( वस्त्र ) अनंत होता चला गया| यह प्रसंग केवल स्त्री की अस्मिता की रक्षा का प्रतीत ही नहीं, बल्कि यह भी दर्शाता हैं कि जब धर्म संकट में होता हैं, तो भगवान स्वयं उसकी रक्षा के लिए आते हैं|

द्रौपदी का चरित्र हमें यह सिखाता हैं कि नारी केवल परिवार की शोभा ही नहीं, बल्कि सम्मान और धर्म की आधारशिला भी हैं| यही कारण हैं कि द्रौपदी का अपमान महाभारत युद्ध का मुख्य कारण बना|

5. श्रीकृष्ण का भूमिका और गीता का उपदेश:-

महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हैं| वे केवल अर्जुन के सारथी नहीं थे, बल्कि पांडवों के मार्गदर्शन और धर्म के रक्षक भी थे| कुरुक्षेत्र के युद्ध में जब अर्जुन मोह और द्वंद्व में पड़ गए, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया|

भगवतगीता 700 श्लोकों का दिव्य ज्ञान हैं, जिसमें जीवन, कर्म, धर्म और मोक्ष का रहस्य बताया गया हैं| श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि "कर्म करना मनुष्य का अधिकार हैं, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए|"

गीता का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक हैं जितना उस समय था| यह केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन प्रबंधन का अद्भुत सूत्र हैं| श्रीकृष्ण का यह उपदेश हमें यह सिखाता हैं कि कठिन परिस्थितियों में भी हमें अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करना चाहिए|

6. कुरुक्षेत्र का महान युद्ध:-

महाभारत का चरम बिंदु हैं कुरुक्षेत्र का युद्ध| यह केवल दो परिवारों के बीच का संघर्ष नहीं था, बल्कि धर्म और अधर्म की निर्णायक टक्कर थी| यह युद्ध 18दिन चला और इसमें लगभग सभी बड़े योद्धा शामिल हुए|

युद्ध में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, अर्जुन, भीम, अभिमन्यु, घटोत्कच जैसे महान योद्धाओं ने अपनी वीरता दिखाई| इस युद्ध ने यह सिखाया कि अन्याय और अधर्म चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में धर्म और सत्य की ही विजय होती हैं|

कुरुक्षेत्र का युद्ध यह भी बताता हैं कि लालच और ईर्ष्या कैसे पुरे परिवार और राज्य को विनाश की ओर ले जाते हैं| यह केवल एतिहासिक युद्ध नहीं था, बल्कि यह जीवन का प्रतीकात्मक संदेश हैं कि जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष आवश्यक होगा|

7. भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा और योगदान:-

भीष्म पितामह महाभारत के सबसे सम्मानित और वीर पात्रों में से एक थे| उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था ताकि उनके पिता राजा शांतनु का विवाह सत्यवती से हो सके| उनकी यह भीषण प्रतिज्ञा ही उन्हें "भीष्म" नाम दिलाती हैं|

युद्ध में भीष्म पांडवों के विरोध में लड़े, लेकिन उनका हृदय हमेशा धर्म के पक्ष में रहा| उन्होंने युद्धभूमि में अपनी इच्छामृत्यु का अधिकार पाया और तब तक जीवित रहे जब तक उन्होंने युधिष्ठिर को धर्म और नीति की शिक्षा नहीं दे दी|

भीष्म का जीवन हमें यह सिखाता हैं कि त्याग और अनुशासन का महत्व क्या हैं| उनकी प्रतिज्ञा और धर्मनिष्ठा आज भी आदर्श मानी जाती हैं| वे इस बात का प्रमाण हैं कि धर्म का मार्ग कठिन जरुर होता हैं, लेकिन वही सच्चा और स्थायी मार्ग हैं|

8. कर्ण का चरित्र और उसका द्वंद्व:-

कर्ण महाभारत का वह पात्र हैं जो जितना वीर और दानवीर था, उतना ही दुर्भाग्यशाली भी| उनका जन्म कुंती से हुआ था, लेकिन वे सूतपुत्र कहे गए और समाज ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे अधिकारी थे|

कर्ण का जीवन द्वंद्वो से भरा रहा- वे पांडवों के भाई थे, लेकिन दुर्योधन में मित्र होने के कारण कौरवों की ओर से लड़े| वे अद्वितीय धनुर्धर थे और दानवीर के रूप में प्रसिद्ध थे| लेकिन उनका जीवन हमें यह सिखाता हैं कि कभी-कभी गलत संगत और परिस्थितियाँ महान प्रतिभा को भी अधर्म की ओर धकेल देती हैं|

कर्ण का अंत दुखद हुआ, लेकिन उनका चरित्र यह संदेश देता हैं कि व्यक्ति के कर्म और नीतियाँ ही उसकी पहचान होती हैं, जन्म नहीं| वे भारतीय संस्कृति में करुणा और संघर्ष का प्रतीक बने|

9. अभिमन्यु और युवाओं का साहस:-

महाभारत में अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु युवा वीरता का प्रतीक हैं| युद्ध के दौरान जब कौरवों ने चक्रव्यूह रचना बनाई, तब अभिमन्यु ने मात्र सोलह वर्ष की आयु में उसमे प्रवेश किया| उन्हें केवल प्रवेश करना आता था, लेकिन बाहर निकलने की विधि नहीं पता थी|

फिर भी अभिमन्यु ने अद्भुत साहस दिखाया और अकेले ही कई महान योद्धाओं का सामना किया| अंततः वे शहीद हो गए, लेकिन उनका बलिदान पांडवों की विजय का कारण बना|

अभिमन्यु का चरित्र हमें यह सिखाता हैं कि युवाओं में ऊर्जा और साहस कितना महान होता हैं| अगर सही दिशा मिले, तो युवा समाज और राष्ट्र के लिए चमत्कार कर सकते हैं| अभिमन्यु आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं|

10. महाभारत के जीवन सूत्र:-

महाभारत केवल युद्ध की कहानी नहीं हैं, बल्कि यह जीवन के गहरे सूत्र सिखाता हैं| इसमें दिखाया गया हैं कि लालच और अन्याय का अंत विनाश में होता है, जबकि सत्य और धर्म की हमेशा विजय होती हैं|

यह हमें यह भी बताता हैं कि जीवन में कठिनाईयां अवश्य आएंगी, लेकिन हमें अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए| श्रीकृष्ण का गीता उपदेश हमें यह सिखाता हैं कि जीवन का आधार हैं और फल की चिंता किए बिना धर्म का पालन करना चाहिए|

महाभारत यह भी दर्शाता हैं कि परिवार और समाज में मतभेद को अगर समय रहते नहीं सुलझाया जाए, तो वे बड़े विनाश का कारण बन सकते हैं| इसलिए संवाद, धैर्य और धर्म का पालन ही शांति और सफलता का मार्ग हैं|

11. विदुर नीति और जीवन प्रबंधन:-

महाभारत में विदुर का स्थान बहुत विशेष हैं| वे धृतराष्ट्र के भाई और कुरुवंश के मंत्री थे| विदुर अपनी बुद्धिमत्ता, धर्मनिष्ठा और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे| उन्होंने धृतराष्ट्र को कई अंत में विनाश का कारण बनेंगे, लेकिन धृतराष्ट्र ने उनकी बात नहीं मानी|

विदुर की शिक्षाओं को "विदुर नीति" कहा जाता हैं, जिसमें राज्य संचालन, परिवार प्रबंधक और जीवन जीने के आदर्श सूत्र दिए गए हैं| इसमें बताया गया हैं कि राजा को प्रजा का कल्याण ही सर्वोपरि मानना चाहिए और व्यक्ति को अपने कर्म और धर्म का पालन करते हुए जीवन जीना चाहिए|

आज भी विदुर नीति को जीवन प्रबंधक और नेतृत्व के लिए मार्गदर्शन माना जाता हैं| यह हमें सिखाती हैं कि सत्य बोलना और न्याय का पालन करना ही स्थायी सफलता का आधार हैं|

12. शकुनि की चालें और राजनीति का कला पक्ष:-

महाभारत के सबसे रहस्यमय और कुटिल पात्रों में से एक था - मामा शकुनि| वह गांधारी का भाई था और कौरवों के पक्ष में खड़ा रहा| शकुनि ही वह व्यक्ति था जिसने दुर्योधन को पांडवों के खिलाफ भडकाया और जुए का खेल रचाया|

उनकी राजनीति और चालबाजियों ने ही महाभारत युद्ध की नींव रखी| शकुनि ने बार-बार षड्यंत्र करके पांडवों को संकट में डाला| उसकी वजह से ही द्रौपदी का चीरहरण और पांडवों का वनवास हुआ|

शकुनि का चरित्र हमें यह सिखाता हैं कि राजनीति का काला पक्ष कितना विनाशकारी हो सकता हैं| छल और षड्यंत्र चाहे थोड़े समय के लिए सफलता दिला दें, लेकिन अंत में उनका परिणाम विनाश ही होता हैं|

13. द्रोणाचार्य और शिक्षा का महत्व:-

महाभारत में द्रोणाचार्य को गुरु और शस्त्रविद्या के अद्वितीय आचार्य के रूप में जाना जाता हैं| उन्होंने पांडवों और कौरवों दोनों को शिक्षा दी| अर्जुन उनके सबसे प्रिय शिष्य बने, जबकि एकलव्य का प्रसंग शिक्षा और समानता की दृष्टि से आज भी चर्चित हैं|

द्रोणाचार्य ने जीवन भर शिक्षा के महत्व को दर्शाया| हालांकि, युद्ध में वे कौरवों के पक्ष में खड़े रहे, लेकिन उनका हृदय सदैव धर्म की ओर झुका रहा|

द्रोणाचार्य का चरित्र यह दिखाता हैं कि शिक्षा केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि नैतिकता और धर्म का पालन भी सिखाना चाहिए| एक सच्चे गुरु का दायित्व हैं कि वह अपने शिष्य को केवल विद्या ही नहीं, बल्कि सही जीवन मार्ग भी दिखाए|

14. धर्मराज युधिष्ठिर की सत्यनिष्ठा:-

पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर को धर्मराज कहा जाता हैं| वे सत्य और धर्म के प्रति इतने दृढ थे कि किसी भी परिस्थिति में झूठ बोलने या अधर्म का सहारा लेने से बचते थे|

हालांकि, जुए की लत के कारण वे बड़ी गलती कर बैठे और अपने भाईयों, राज्य तथा द्रौपदी तक को दांव पर लगा दिया| लेकिन बाद में उनके निर्णय और नेतृत्व ने पांडवों को विजय दिलाई|

युधिष्ठिर का चरित्र यह बताता हैं कि मनुष्य से गलती हो सकती हैं, लेकिन अगर वह सत्य और धर्म का मार्ग पकड़ ले तो वह महान बन सकता हैं| उनका आदर्श यह हैं कि हर स्थिति में धर्म को सर्वोपरि मानना चाहिए|

15. युद्ध के बाद का शांति संदेश:-

महाभारत केवल युद्ध का वर्णन नहीं करता, बल्कि युद्ध के बाद की स्थिति भी बताता हैं| 18 दिन के युद्ध ने लाखों लोगों का जीवन नष्ट कर दिया| कौरव पूरी तरह समाप्त हो गए और पांडव भी अपने प्रियजनों को खोकर दुखी थे|

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को समझाया कि अब उनका कर्तव्य हैं राज्य को धर्मपूर्वक चलाना और प्रजा के कल्याण के लिए काम करना| युद्ध का यह संदेश बहुत गहरा हैं - कि हिंसा और संघर्ष अंत में केवल विनाश लाते हैं, जबकि शांति और धर्म ही स्थायी सुख और प्रगति का मार्ग हैं| महाभारत का यही अंतिम संदेश हैं कि युद्ध आखिरी विकल्प होना चाहिए, और सच्ची विजय केवल शांति और धर्म में ही हैं|

*  निष्कर्ष:-

महाभारत केवल एक धार्मिक ग्रंथ या पौराणिक कथा नहीं हैं, बल्कि यह जीवन का शाश्वत मार्गदर्शन हैं| इसमें धर्म, राजनीति, नीति, युद्ध, त्याग, साहस और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम हैं| यह हमें यह सिखाता हैं कि जीवन चाहे कितना भी जटिल क्यों न हो, सत्य और धर्म का पालन करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा कर्तव्य हैं|

महाभारत के पात्र - श्रीकृष्ण, भीष्म, कर्ण, द्रौपदी, अर्जुन, अभिमन्यु - सभी जीवन के अलग-अलग आयामों का प्रतिनिधित्व करते हैं| इनके संघर्ष और निर्णय हमें यह समझाते हैं कि मानव जीवन भी एक युद्धभूमि हैं, जहाँ हमें धर्म, साहस और कर्म का पालन करते हुए आगे बढ़ना चाहिए|

आज भी महाभारत केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं| यह हमें बार-बार याद दिलाता हैं कि अधर्म चाहे कितना भी बलवान हो, अंततः सत्य की ही विजय होती हैं|




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